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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की। दो प्रकार के जीवों की भवायु कही गई है, यथा-देवों की और नैरयिकों
की।
कर्म दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-प्रदेश कर्म और अनुभाव कर्म ।
दो प्रकार के जीव यथाबद्ध आयुष्य पूर्ण करते हैं, यथा-देव और नैरयिक । दो प्रकार के जीवों की आयु सोपक्रमवाली कही है, मनुष्यों की और तिर्यक्योनिकों की। सूत्र - ८६
जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में अत्यन्त तुल्य, विशेषता रहित, विविधता रहित, लम्बाईचौड़ाई, आकार एवं परिधि में एक दूसरे का अतिक्रम नहीं करने वाले दो वर्ष-क्षेत्र कहे गए हैं, यथा-भरत और ऐरवत । इसी तरह हैमवत और हिरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष जानने चाहिए।
इस जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व और पश्चिम दिशा में दो क्षेत्र कहे गए हैं जो अत्यन्त समान-विशेषता रहित हैं, यथा-पूर्व विदेह और अपर विदेह।।
___ जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो कुरु (क्षेत्र) कहे गए जो परस्पर अत्यन्त समान हैं, यथा - देवकुरु और उत्तरकुरु । वहाँ दो विशाल महावृक्ष हैं जो परस्पर सर्वथा तुल्य, विशेषता रहित, विविधता रहित, लम्बा, चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई, आकृति और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रम नहीं करते हैं, यथा-कूट शाल्मली और जंब सुदर्शना । वहाँ महाऋद्धि वाले यावत्-महान् सुख वाले और पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, यथा-वेणुदेव गरुड़ और अनाढ़िय । ये दोनों जम्बूद्वीप के अधिपति हैं। सूत्र-८७
जम्बूद्वीप मे मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो वर्षधर पर्वत कहे गए हैं, परस्पर सर्वथा समान, विशेषता रहित, विविधता रहित, लम्बाई-चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई, संस्थान और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रम नहीं करते हैं, यथा-लघु हिमवान् और शिखरी । इसी प्रकार महाहिमवान् और रुक्मि । निषध और नीलवान् पर्वतों के सम्बन्ध में जानना।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में हैमवत् और एरण्यवत क्षेत्र में दो गोल वैताढ्य पर्वत है जो अति समान, विशेषता और विविधता और विविधता रहित-यावत् उनके नाम, यथा-शब्दापाती और विकटपाती । वहाँ महाऋद्धि वाले-यावत् पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, यथा-स्वाति और प्रभास।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में हरिवर्ष और रम्यकवर्ष में दो गोल वैताढ्य पर्वत हैं जो अतिसमान हैं यावत्-जिनके नाम, गन्धपाती और माल्यवंत पर्याय । वहाँ महाऋद्धि वाले यावत् पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, अरुण और पद्म ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में और देवगुरु के पूर्व और पश्चिम में अश्वस्कन्ध के समान अर्धचन्द्र की आकृति वाले दो वक्षस्कार पर्वत हैं जो परस्पर अति समान हैं-यावत् उनके नाम । सौमनस और विद्युत्प्रभ । जम्बू द्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में तथा कुरु के पूर्व और पश्चिम भाग में अश्व स्कन्ध के समान, अर्धचन्द्र की आकृति वाले दो वक्षस्कार पर्वत हैं जो परस्पर अतिसमान यावत् नाम । गन्धमादन और माल्यवान ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो दो दीर्घ वैताढ्य पर्वत हैं जो अतितुल्य हैं यावत् उनके नाम, यथा-भरत दीर्घ वैताढ्य और ऐवत दीर्घ वैताढ्य ।
उस भरत दीर्घ वैताढ्य में दो गुफाएं कही गई हैं जो अति तुल्य, अविशेष, विविधता रहित और एक दूसरी की लम्बाई, चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि में अतिक्रम न करने वाली हैं, उनके नाम । तिमिस्र गुफा और खण्डप्रपात गुफा । वहाँ महर्द्धिक-यावत्-पल्योपम की स्थिति वाले दो देव रहते हैं, नाम । कृतमालक और नृत्य-मालक । एरवत-दीर्घ वैताढ्य में दो गुफाएं हैं जो अतिसमान हैं यावत्-कृतमालक और नृत्यमालक देव हैं।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में लघुहिमवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गए हैं जो परस्पर अति तुल्य
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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