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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक पुद्गल दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-पर्यायातीत अपर्यायातीत । अथवा कर्ण पुद्गल की तरह समस्त रूप से गृहीत और असमस्त रूप से गृहीत।।
पुद्गल दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-जीव द्वारा गृहीत और अगृहीत । पुद्गल दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-इष्ट और अनिष्ट । पुद्गल दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-कान्त और अकान्त । पुद्गल दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-प्रिय और अप्रिय। पुद्गल दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-मनोज्ञ और अमनोज्ञ ।
पुदगल दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-मनाम (मनःप्रिय) और अमनाम । सूत्र-८३
शब्द दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-गृहीत और अगृहीत । इसी तरह दृष्ट और अनिष्ट-यावत् मनाम और अमनाम शब्द जानने चाहिए।
इसी तरह रूप, गंध, रस और स्पर्श-प्रत्येक में छ छ आलापक जानने चाहिए। सूत्र-८४
आचार दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा-ज्ञानाचार और नो-ज्ञानाचार । नो ज्ञानाचार दो प्रकार का कहा गया है, यथा-दर्शनाचार और नो-दर्शनाचार । नो-दर्शनाचार दो प्रकार का कहा गया है, यथा-चारित्राचार और नो-चारित्राचार । नो चारित्राचार दो प्रकार का कहा गया है, यथा-तपाचार और वीर्याचार।
प्रतिमाएं (प्रतिज्ञाएं) दो कही गई हैं, यथा-समाधि प्रतिमा और उपधान प्रतिमा, प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथाविवेक प्रतिमा और व्युत्सर्ग प्रतिमा । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथा-भद्रा और सुभद्रा । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथामहाभद्र और सर्वतोभद्र । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथा-लघुमोक प्रतिमा और महतीमोक प्रतिमा । प्रतिमाएं दो कही गई हैं, यथा-यवमध्यचन्द्र प्रतिमा और वज्रमध्यचन्द्र प्रतिमा ।
सामायिक दो प्रकार की हैं, यथा-आगार सामायिक । अनगार सामायिक । सूत्र-८५
दो प्रकार के जीवों का जन्म उपपात कहलाता है, देवों और नैरयिकों का । दो प्रकार के जीवों का मरना उद्वर्तन कहलाता है, नैरयिकों का और भवनवासी देवों का । दो प्रकार के जीवों का मरना च्यवन कहलाता है, ज्योतिष्कों का और वैमानिकों का।
दो प्रकार के जीवों की गर्भ में उत्पत्ति होती है, यथा-मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिकों की । दो प्रकार के जीव गर्भ में रहे हुए आहार करते हैं, मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय । दो प्रकार के जीव गर्भ में वृद्धि पाते हैं, यथामनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यंच।
इसी प्रकार दो प्रकार के जीव गर्भ में अपचय पाते हैं। दो प्रकार के जीव गर्भ में विकुर्वणा करते हैं । इसी प्रकार दो प्रकार के जीव गर्भ में गति-पर्याय पाते हैं । दो प्रकार के जीव गर्भ में समुद्धात करते हैं। दो प्रकार के जीव गर्भ में कालसंयोग करते हैं । दो प्रकार के जीव गर्भ से आयाति जन्म पाते हैं। दो प्रकार के जीव गर्भ में मरण पाते हैं।
दो प्रकार के जीवों का शरीर त्वचा और सन्धि बन्धन वाला कहा गया है, यथा
मनुष्यों का और तिर्यंच पंचेन्द्रिय का । दो प्रकार के जीव शुक्र और शोणित से उत्पन्न होते हैं, यथा-मनुष्य और तिर्यंच पंचेन्द्रिय।
स्थिति दो प्रकार की कही गई है, यथा-कायस्थिति और भवस्थिति । दो प्रकार के जीवों की कायस्थिति कही गई है, यथा-मनुष्यों की और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की। दो प्रकार के जीवों की भवस्थिति कही गई है, यथा-देवों की और नैरयिकों की।
आयु दो प्रकार की कही गई है, यथा-अद्धायु और भवायु । दो प्रकार के जीवों की अद्धायु कही गई है, यथा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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