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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक देवलोक में जाना । एक सौ आठ सिद्ध-उत्कृष्ट अवगाहना वाले एक समय में एक सौ आठ सिद्ध हुए। असंयत पूजाआरम्भ और परिग्रह के धारण करने वाले ब्राह्मणों की साधुओं के समान पूजा हुई। सूत्र-१००४ इस रत्नप्रभा पृथ्वी का रत्नकाण्ड दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है । इस रत्नप्रभा पृथ्वी का वज्र काण्ड दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है। इसी प्रकार-३. वैडूर्य काण्ड, ४. लोहिताक्ष काण्ड, ५. मसारगल्ल काण्ड, ६. हंसगर्भ काण्ड, ७. पुलक काण्ड, ८. सौगंधिक काण्ड, ९. ज्योतिरस काण्ड, १०. अंजन काण्ड, ११. अंजन पुलक काण्ड, १२. रजत काण्ड, १३. जलातरुप काण्ड, १४. अंक काण्ड, १५. स्फटिक काण्ड, १६. रिष्ट काण्ड । ये सब रत्न काण्ड के समान दस सौ (एक हजार) योजन के चौड़े हैं। सूत्र-१००५ सभी द्वीप समुद्र दस सौ (एक हजार) योजन के गहरे हैं । सभी महाद्रह दस योजन गहरे हैं । सभी सलिल कुण्ड दस योजन गहरे हैं । शीता और शीतोदा नदी के मूल मुख दस-दस योजन गहरे हैं। सूत्र-१००६ कृत्तिका नक्षत्र चन्द्र के सर्व बाह्य मण्डल से दसवे मण्डल में भ्रमण करता है । अनुराधा नक्षत्र चन्द्र के सर्व आभ्यन्तर मण्डल से दसवें मण्डल में भ्रमण करता है। सूत्र- १००७, १००८ ज्ञान की वृद्धि करने वाले दस नक्षत्र हैं, यथा- मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, तीन पूर्वा, मूल, अश्लेषा, हस्त और चित्रा सूत्र - १००९ चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रियों की दस लाख कुल कोटी है । उरपरिसर्प स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रियों की दस लाख कुल कोटी है। सूत्र-१०१० दस स्थानों में बद्ध पुद्गल जीवों ने पाप कर्म रूप में ग्रहण किये, ग्रहण करते हैं और ग्रहण करेंगे । यथाप्रथम समयोत्पन्न एकेन्द्रिय द्वारा निवर्तित यावत्-अप्रथमसमयोत्पन्न पंचेन्द्रिय द्वारा निवर्तित पुद्गल जीवों ने पाप कर्मरूप में ग्रहण किये, ग्रहण करते हैं और ग्रहण करेंगे। इसी प्रकार चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के तीन-तीन विकल्प कहने चाहिए। दस प्रादेशिक स्कन्ध अनन्त हैं । दस प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं । दस समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त हैं । दस गुण वाले पुद्गल अनन्त हैं । इसी प्रकार वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से यावत्-दस गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त हैं। स्थान-१० का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् 'स्थान' तृतीय अङ्गसूत्र का हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 157
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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