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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- ९९६ यथा-बाला दशा, क्रीडा दशा, मंद दशा, बला दशा, प्रज्ञा दशा, हायनी दशा, प्रपंचा दशा, प्रभारा दशा, मुंमुखी दशा, शायनी दशा। सूत्र-९९७ तृण वनस्पतिकाय दस प्रकार का है, मूल, कंद, यावत्-पुष्प, फल, बीज। सूत्र-९९८ विद्याधरों की श्रेणियाँ चारों ओर से दस-दस योजन चौड़ी हैं। आभियोगिक देवों की श्रेणियाँ चारों ओर से दस-दस योजन चौड़ी हैं। सूत्र-९९९ ग्रैवेयक देवों के विमान दस योजन के ऊंचे हैं। सूत्र-१००० दस कारणों से तेजोलेश्या से भस्म होता है । यथा-तेजोलेश्या लब्धि युक्त श्रमण-ब्राह्मण की यदि कोई आशातना करता है तो वह आशातना करने पर कुपित होकर तेजोलेश्या छोड़ता है इससे वह पीड़ित होकर भस्म हो जाता है। इसी प्रकार श्रमण ब्राह्मण की आशातना होती देखकर कोई देवता कुपित होता है और तेजोलेश्या छोड़कर आशातना करने वाले को भस्म कर देता है । इसी प्रकार श्रमण-ब्राह्मण की आशातना करने वाले को देवता और श्रमण-ब्राह्मण एक साथ तेजोलेश्या छोड़कर भस्म कर देते हैं । इसी प्रकार श्रमण-ब्राह्मण जब तेजो-लेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाले के शरीर पर छाले पड़ जाते हैं, छालों के फूट जाने पर वह भस्म हो जाता है । इसी प्रकार देवता तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाला उसी प्रकार भस्म हो जाता है। इसी प्रकार देवता और श्रमण-ब्राह्मण एक साथ तेजोलेश्या छोड़ते हैं तो आशातना करने वाला उसी प्रकार भस्म हो जाता है। इसी प्रकार श्रमण-ब्राह्मण जब तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाले के शरीर पर छाले पड़कर फूट जाते हैं, पश्चात् छोटे-छोटे छाले पैदा होकर भी फूट जाते हैं तब वह भस्म हो जाता है । इसी प्रकार देवता जब तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाला पूर्ववत् भस्म हो जाता है । इसी प्रकार देवता और श्रमण-ब्राह्मण जब एक साथ तेजोलेश्या छोड़ता है तो आशातना करने वाला पूर्ववत् भस्म हो जाता है। कोई तेजोलेश्या वाला किसी श्रमण की आशातना करने के लिए उस पर तेजोलेश्या छोड़ता है तो वह उसका कुछ भी अनर्थ नहीं कर सकती है वह तेजोलेश्या इधर से उधर ऊंची नीची होती है और उस श्रमण के चारों ओर घूमकर आकाश में उछलती है और वह तेजोलेश्या छोड़ने वाले की ओर मुड़कर उसे ही भस्म कर देती है जिस प्रकार गोशालक की तेजोलेश्या से गोशालक ही मरा किन्तु भगवान महावीर का कुछ भी नहीं बिगड़ा। सूत्र-१००१, १००२ आश्चर्य दश प्रकार के हैं, यथा उपसर्ग-भगवान महावीर की केवली अवस्था में भी गोशालक ने उपसर्ग किया । गर्भहरण-हरिणगमेषी देव ने भगवान महावीर के गर्भ को देवानन्दा की कुक्षी से लेकर त्रिशला माता की कुक्षी में स्थापित किया । स्त्री तीर्थंकरभगवान मल्लीनाथ स्त्रीलिङ्ग (वेद) में तीर्थंकर हुए । अभावित पर्षदा-केवलज्ञान प्राप्त हो जाने के पश्चात् भगवान महावीर की देशना निष्फल गई, किसीने धर्म स्वीकार नहीं किया । कृष्ण का अपरकंका गमन, कृष्ण वासुदेव द्रौपदी को लाने के लिए अपरकंका नगरी गए । चन्द्र-सूर्य का आगमन-कोशाम्बी नगरी में भगवान महावीर की वन्दना के लिए शाश्वत विमान सहित चन्द्र-सूर्य आए । तथा सूत्र - १००३ हरिवंश कुलोत्पत्ति-हरिवर्ष क्षेत्र के युगलिये का भरत क्षेत्र में आगमन हुआ और उससे हरिवंश कुल की उत्पत्ति हुई । युगलिये का निरुपक्रम आयु घटा और उसकी नरक में उत्पत्ति हुई । चमरोत्पात-चमरेन्द्र का सौधर्म मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 156
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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