SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ७८७ महाशुक्र और सहस्रारकल्प में विमान आठसौ योजन के ऊंचे हैं। सूत्र-७८८ भगवान अरिष्टनेमिनाथ के आठसौ ऐसे वादि मुनियों की सम्पदा थी जो देव, मनुष्य और असुरों की पर्षदा में किसी से पराजित होने वाले नहीं थे। सूत्र - ७८९ केवली समुद्घात आठ समय का होता है, यथा-प्रथम समयमें स्वदेह प्रमाण नीचे ऊंचे, लम्बा और पोला चौदह रज्जु (लोक) प्रमाण दण्ड किया जाता है, द्वीतिय समयमें पूर्व और पश्चिममें लोकान्त पर्यन्त कपाट किये जाते हैं, तृतीय समयमें दक्षिण और उत्तरमें लकान्त पर्यन्त मंथन किया जाता है, चतुर्थ समयमें रिक्त स्थानों की पूर्ति करके लोक को पूरित किया जाता है, पाँचवे समय में आंतरों का संहरण किया जाता है, छठे समय में मंथान का संहरण किया जाता है, सातवे समय में कपाट का संहरण किया जाता है, आठवे समय में दण्ड का संहरण किया जाता है। सूत्र-७९० भगवान महावीर के उत्कृष्ट ८०० ऐसे शिष्य थे जिनको कल्याणकारी अनुत्तरोपपातिक देवगति यावत् भविष्य में (भद्र) मोक्ष गति निश्चित है। सूत्र- ७९१-७९३ वाणव्यन्तर देव आठ प्रकार के हैं, यथा-पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गंधर्व । इन आठ वाणव्यन्तर देवों के आठ चैत्य वृक्ष हैं, यथा- पिशाचों का कदम्ब वृक्ष, यक्षों का चैत्य वृक्ष, भूतों का तुलसी वृक्ष, राक्षसों का कडक वृक्ष, किन्नरों का अशोकवृक्ष, किंपुरुषों का चंपकवृक्ष, भुजंगों का नागवृक्ष, गंधर्वो का तिंदुक वृक्ष । सूत्र-७९४ रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूमि भाग से ८०० योजन ऊंचे ऊपर की ओर सूर्य का विमान गति करता है। सूत्र-७९५ आठ नक्षत्र चन्द्र के साथ स्पर्श करके गति करते हैं, यथा-कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा। सूत्र-७९६ जम्बूद्वीप के द्वार आठ योजन ऊंचे हैं। सभी द्वीप समुद्रों के द्वार आठ योजन ऊंचे हैं। सूत्र - ७९७ पुरुष वेदनीय कर्म की जघन्य आठ वर्ष की बन्ध स्थिति है। यशोकीर्त नामकर्म की जघन्य बन्ध स्थिति आठ मुहूर्त की है। उच्चगोत्र कर्म की भी इतनी ही है। सूत्र - ७९८ तेइन्द्रिय की आठ लाख कुल कौड़ी है। सूत्र-७९९ जीवों ने आठ स्थानों में निवर्तित-संचित पुद्गल पापकर्म के रूप में चयन किए हैं, चयन करते हैं और चयन करेंगे। यथा-प्रथम समय नैरयिक निवर्तित यावत्-अप्रथम समय देव निवर्तित । इसी प्रकार उपचयन, बन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के तीन तीन दण्डक कहने चाहिए। आठ प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं । अष्ट प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं । यावत् आठ गुण रूक्ष पुद्गल भी अनन्त हैं। स्थान-८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 133
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy