________________
आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- ५१४
___ पाँच तीर्थंकर कुमारावस्था में (राज्य ग्रहण किए बिना) मुण्डित यावत् प्रव्रजित हुए, यथा-वासुपूज्य, मल्ली, अरिष्टनेमी, पार्श्वनाथ, महावीर । सूत्र - ५१५
चमरचंचा राजधानी में पाँच सभाएं हैं, यथा-सुधर्मासभा, उपपातसभा, अभिषेकसभा, अलंकारसभा, व्यवसायसभा । प्रत्येक इन्द्र स्थान में पाँच-पाँच सभाएं हैं, यथा-सुधर्मा सभा यावत् व्यवसायसभा। सूत्र-५१६
पाँच नक्षत्र पाँच पाँच तारा वाले हैं, यथा-घनिष्ठा, रोहिणी, पुनर्वसु, हस्त, विशाखा । सूत्र - ५१७
जीवों ने पाँच स्थानों में कर्म पुद्गलों को पाप कर्म रूप में चयन किया, करते हैं और करेंगे । यथा-एकेन्द्रिय रूप में यावत् पंचेन्द्रिय रूप में । इसी प्रकार उपचय, बंध, उदीरणा, वेदन तथा निर्जरा सम्बन्धी सूत्रक हैं।
पाँच प्रदेश वाले स्कन्ध अनन्त हैं । पाँच प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं । पाँच समयाश्रित पुद्गल अनन्त हैं। पाँच गुण कृष्ण यावत् पाँच गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त हैं।
स्थान-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 103