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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक पर्याय का व्यय । बंध छेदन-कर्मबंध का छेदन । प्रदेश छेदन-जीव द्रव्य के बुद्धि से कल्पित प्रदेश । द्विधाकार छेदनजीवादिद्रव्यों के दो विभाग करना। आनन्तर्य पाँच प्रकार का है, यथा-उत्पादानान्तर्य-जीवों की निरन्तर उत्पत्ति । व्ययानन्तर्य-जीवों का निरन्तर मरण । प्रदेशानन्तर्य-प्रदेशों का निरन्तर अविरह । समयानन्तर्य-समय का निरन्तर अविरह । सामान्यान्तर्य-उत्पाद आदि के अभाव में निरन्तर अविरह। अनन्त पाँच प्रकार के हैं, यथा-नाम अनन्त, स्थापना अनन्त, द्रव्य अनन्त, गणना अनन्त, प्रदेशानन्त । अनन्तक पाँच प्रकार के हैं, यथा-एकतः अनन्तक-दीर्घता की अपेक्षा जो अनन्त है एक श्रेणी का क्षेत्र । द्विधा अनन्तक-लम्बाई और चौड़ाई की अपेक्षा से जो अनन्त हो । देश विस्तार अनन्तक-रूचक प्रदेश से पूर्व आदि किसी एक दिशा में देश का जो विस्तार हो । सर्वविस्तार अनन्तक-अनन्तप्रदेशी सम्पूर्ण आकाश । शाश्वता-नन्तकअनन्त समय की स्थिति वाले जीवादि द्रव्य । सूत्र- ५०६ ज्ञान पाँच प्रकार के हैं, यथा-आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवल ज्ञान । सूत्र-५०७ ज्ञानावरणीय कर्म पाँच प्रकार के हैं, यथा-आभिनिबोधिकज्ञानावरणीय कर्म यावत्-केवलज्ञानावरणीय कर्म सूत्र-५०८ स्वाध्याय पाँच प्रकार के हैं, यथा-वाचना, पृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा, धर्मकथा। सूत्र- ५०९ प्रत्याख्यान पाँच प्रकार के हैं, यथा-श्रद्धा शुद्ध, विनय शुद्ध, अनुभाषना शुद्ध, अनुपालना शुद्ध, भाव शुद्ध। सूत्र-५१० प्रतिक्रमण पाँच प्रकार के हैं, यथा-आश्रव द्वार-प्रतिक्रमण, मिथ्यात्व-प्रतिक्रमण, कषाय-प्रतिक्रमण, योग - प्रतिक्रमण, भाव-प्रतिक्रमण । सूत्र- ५११ पाँच कारणों से गुरु शिष्य को वाचना देते हैं-यथा-संग्रह के लिए-शिष्यों को सूत्र का ज्ञान कराने के लिए। उपग्रह के लिए-गच्छ पर उपकार करने के लिए। निर्जरा के लिए-शिष्यों को वाचना देने से कर्मों की निर्जरा होती है। सूत्र ज्ञान दृढ़ करने के लिए । सूत्र का विच्छेद न होने देने के लिए। पाँच कारणों से सूत्र सीखे, यथा-ज्ञान वृद्धि के लिए, दर्शन शुद्धि के लिए, चारित्र शुद्धि के लिए, दूसरे का दुराग्रह छुड़ाने के लिए, पदार्थों के यथार्थ ज्ञान के लिए। सूत्र-५१२ सौधर्म और ईशान कल्प में विमान पाँच सौ योजन के ऊंचे हैं। ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प में देवताओं के भवधारणीय शरीर ऊंचाई में पाँच हाथ ऊंचे हैं। नैरयिकों ने पाँच वर्ण और पाँच रस वाले कर्म पुद्गल बाँधे हैं, बाँधते हैं और बाँधेगे । यथा-कृष्ण यावत् शुक्ल । तिक्त यावत् मधुर । इसी प्रकार वैमानिक देव पर्यन्त (चौबीस दण्डकों में) कहें। सूत्र - ५१३ जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण में गंगा महानदी में पाँच महानदियाँ मिलती हैं, यथा-यमुना, सरयू, आदि, कोसी, मही । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु के दक्षिण में सिन्धु महानदी में पाँच महानदियाँ मिलती हैं । यथा-शतद्रू, विभाषा, वित्रस्ता, एरावती, चंद्रभागा । जम्बूद्वीप वर्ती मेरु के उत्तर में रक्ता महानदी में पाँच महानदियाँ मिलती हैं, यथा-कृष्णा, महा कृष्णा, नीला, महानीला, महातीरा । जम्बूद्वीप वर्ती मेरु के उत्तर में रक्तावती महानदी में पाँच महानदियाँ मिलती हैं, यथा-इन्द्रा, इन्द्र सेना, सुसेणा, वारिसेणा, महाभोगा। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 102
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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