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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-६ - आर्द्रकीय सूत्र - ७३८, ७३९ (गोशालक ने कहा-) हे आर्द्रक ! महावीर स्वामी ने पहले जो आचरण किया था, उसे सूनो । पहले वे एकान्त विचरण करते थे और तपस्वी थे। अब वे अनेक भिक्षुओं को साथ रख कर पृथक्-पृथक् विस्तार से धर्मोपदेश देते हैं । ..... उस अस्थिर महावीर ने यह तो अपनी आजीविका बना ली है । वह जो सभा में जाकर अनेक भिक्षुगण के बीच बहुत-से लोगों के हित के लिए धर्मोपदेश देते हैं, उनका वर्तमान व्यवहार उनके पूर्व व्यवहार से मेल नहीं खाता। सूत्र - ७४० इस प्रकार या तो महावीरस्वामी का पहला व्यवहार एकान्त विचरण ही अच्छा हो सकता है, अथवा इस समय का अनेक लोगों के साथ रहने का व्यवहार ही अच्छा हो सकता है । किन्तु परस्पर विरुद्ध दोनों आचरण अच्छे नहीं हो सकते, क्योंकि दोनों में परस्पर विरोध है । (गोशालक के आक्षेप का आर्द्रकमुनि ने इस प्रकार समाधान किया-) श्रमण भगवान महावीर पूर्वकाल में, वर्तमान काल में और भविष्यत् काल में (सदैव) एकान्त का ही अनुभव करते हैं । अतः उनके आचरण में परस्पर मेल है। सूत्र-७४१ बारह प्रकार की तपःसाधना द्वारा आत्मशुद्धि के लिए श्रम करने वाले (श्रमण) एवं जीवों को मत मारो' । उपदेश देने वाले भ० महावीर स्वामी समग्र लोक को यथावस्थित जानकर त्रस-स्थावर जीवों के क्षेम के लिए हजारों लोगों के बीच में धर्मोपदेश करते हए भी एकान्तवास की साधना कर लेते हैं। क्योंकि उनकी चित्तवृत्ति उसी प्रकार की बनी रहती है। सूत्र - ७४२ श्रुत-चारित्ररूप धर्म का उपदेश करनेवाले भगवान महावीर को कोई दोष नहीं होता, क्योंकि क्षान्त, दान्त और जितेन्द्रिय तथा भाषादोषों को वर्जित करनेवाले भगवान महावीर द्वारा भाषा का सेवन किया जाना गुणकर है सूत्र -७४३ कर्मों से सर्वथा रहित हुए श्रमण भगवान महावीर श्रमणों के लिए पंच महाव्रत तथा (श्रावकों के लिए) पाँच अणुव्रत एवं पाँच आश्रवों और संवरों का उपदेश देते हैं । तथा श्रमणत्व के पालनार्थ वे विरति का उपदेश करते हैं, यह मैं कहता हूँ। सूत्र - ७४४ (गोशालक ने आर्द्रक मुनि से कहा-) कोई शीतल जल, बीजकाय, आधाकर्म तथा स्त्रियों का सेवन भले ही करता हो, परन्तु जो एकान्त विचरण करने वाला तपस्वी साधक है, उसे हमारे धर्म में पाप नहीं लगता। सूत्र - ७४५ (आर्द्रक मुनि ने प्रतिवाद किया-) सचित्त जल, बीजकाय, आधाकर्म तथा स्त्रियाँ, इनका सेवन करने वाला गृहस्थ होता है, श्रमण नहीं हो सकता। सूत्र - ७४६ बीजकाय, सचित्त जल एवं स्त्रियों का सेवन करने वाले पुरुष भी श्रमण हों तो गहस्थ भी श्रमण क्यों नहीं माने जाएंगे ? वे भी पूर्वोक्त विषयों का सेवन करते हैं । सूत्र - ७४७ (अतः) जो भिक्षु होकर भी सचित्त, बीजकाय, (सचित्त) जल एवं आधाकर्म दोषयुक्त आहारादि का उपभोग करते हैं, वे केवल जीविका के लिए भिक्षावृत्ति करते हैं । वे अपने ज्ञातिजनों का संयोग छोड़कर भी अपनी काया के ही पोषक हैं, वे अपने कर्मों का या जन्म-मरण रूप संसार का अन्त करने वाले नहीं हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 99
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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