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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-७३० सिद्धि जीव का निज स्थान नहीं है, ऐसी खोटी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत सिद्धि जीव का निजस्थान है, ऐसा सिद्धान्त मानना चाहिए । सूत्र - ७३१ साधु नहीं है और असाधु नहीं है, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत साधु और असाधु दोनों हैं, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए। सूत्र - ७३२ कोई भी कल्याणवान और पापी नहीं है, ऐसा नहीं समझना चाहिए, अपितु कल्याणवान एवं पापात्मा दोनों हैं, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए। सूत्र - ७३३ यह व्यक्ति एकान्त कल्याणवान है, और यह एकान्त पापी है, ऐसा व्यवहार नहीं होता, (तथापि) बालपण्डित श्रमण कर्मबन्धन नहीं जानते । सूत्र-७३४ जगत के अशेष पदार्थ अक्षय हैं, अथवा एकान्त अनित्य हैं, तथा सारा जगत एकान्तरूप से दुःखमय है, एवं अमुक प्राणी वध्य हैं, अमुक अवध्य हैं, ऐसा वचन भी साधु को (मुँह से) नहीं नीकालना चाहिए। सूत्र - ७३५ साधुतापूर्वक जीने वाले, सम्यक् आचारवंत निर्दोष भिक्षाजीवी साधु दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए ऐसी दृष्टि नहीं रखनी चाहिए कि साधुगण कपट से जीविका करते हैं। सूत्र-७३६ मेघावी साधु को ऐसा कथन नहीं करना चाहिए कि दान का प्रतिलाभ अमुक से होता है, अमुक से नहीं होता, अथवा तुम्हें आज भिक्षालाभ होगा या नहीं ? किन्तु जिससे शान्ति की वृद्धि होती है, ऐसा वचन कहना चाहिए। सूत्र - ७३७ इस प्रकार इस अध्ययन में जिन भगवान द्वारा उपदिष्ट या उपलब्ध स्थानों के द्वारा अपने आपको संयम में स्थापित करता हुआ साधु मोक्ष प्राप्त होने तक (पंचाचार पालन में) प्रगति करे। - ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 98
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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