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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक यह जानकर साधु प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक अठारह ही पापस्थानों से विरत होता है। वह साधु दाँत साफ करने वाले काष्ठ आदि से दाँत साफ न करे; तथा नेत्रों में अंजन न लगाए, न दवा लेकर वमन करे, और न ही धूप के द्वारा अपने वस्त्रों या केशों को सुवासित करे । वह साधु सावधक्रियारहित, हिंसारहित, क्रोध मान, मया और लोभ से रहित, उपशान्त एवं पाप से निवृत्त होकर रहे । ऐसे त्यागी प्रत्याख्यानी साधु को तीर्थंकर भगवान ने संयत, विरत, पापकर्मों का प्रतिघातक, एवं प्रत्याख्यानकर्ता, अक्रिय, संवृत और एकान्त पण्डित कहा है । (जो भगवान ने कहा है) वही मैं कहता हूँ। अध्ययन-४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (सूत्रकृत) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद' मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 95
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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