SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक उसका छेदन, भेदन एवं प्रहार करके, उसकी विडम्बना और हत्या करके उसका धन हरण कर अपना आहार उपार्जन करता है । इस प्रकार वह महापापी व्यक्ति बड़े-बड़े पापकर्म करके महापापी के रूप में अपने आपको प्रख्यात कर लेता है। (३) कोई पापी जीव किसी धनिक पथिक को सामने से आते देख उसी पथ पर मिलता है, तथा प्रातिपथिक भाव धारण करके पथिका का मार्ग रोककर उसे मारपीट करके यावत उसका धन लूटकर अपना आहारउपार्जन करता है । इस प्रकार महापापी के नाम से प्रसिद्ध होता है। (४) कोई पापी जीव सेंध डालकर उस धनिक के परिवार को मार-पीट कर, यावत् उसके धन को चूरा कर अपनी जीविका चलाता है । इस प्रकार वह स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध करता है। (५) कोई पापी व्यक्ति धनाढ्यों के धन की गाँठ काटने का धंधा अपनाकर धनिकों की गाँठ काटता रहता है । वह मारता-पीटता है यावत् उसका धन हरण कर लेता है, और इस तरह अपना जीवन-निर्वाह करता है । इस प्रकार स्वयं को महापापी के रूप में विख्यात कर लेता है। (६) कोई पापात्मा भेड़ों का चरवाहा बनकर भेड़ों में से किसी को या अन्य किसी भी त्रस प्राणी को मारपीट कर यावत् अपनी आजीविका चलाता है । इस प्रकार स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। (७) कोई पापकर्मा जीव सूअरों को पालने का या कसाई का धंधा अपना कर भैंसे, सूअर या दूसरे त्रस प्राणी को मार-पीट कर, यावत् अपनी आजीविका का निर्वाह करता है । इस प्रकार का महान पाप-कर्म करने के कारण संसार में वह अपने आपको महापापी के नाम से विख्यात कर लेता है। (८) कोई पापी जीव शिकारी का धंधा अपनाकर मृग या अन्य किसी त्रस प्राणी को मार-पीट कर, यावत् अपनी आजीविका उपार्जन करता है । इस प्रकार स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। (९) कोई पापात्मा बहेलिया बनकर पक्षियों को जाल में फँसाकर पकड़ने का धंधा स्वीकार करके पक्षी या अन्य किसी त्रस प्राणी को मारकर यावत् अपनी आजीविका कमाता है । वह स्वयं को महापापी के नाम से प्रख्यात कर लेता है। (१०) कोई पापकर्मजीवी मछुआ बनकर मछलियों को जाल में फँसा कर पकड़ने का धंधा अपनाकर मछली या अन्य त्रस जलजन्तुओं का हनन करके यावत् अपनी आजीविका चलाता है । अतः स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। (११) कोई पापात्मा गोवंशघातक का धंधा अपना कर गाय, बैल या अन्य किसी भी त्रस प्राणी का हनन, छेदन करके यावत् अपनी जीविका कमाता है । अपने को महापापी के रूप में प्रसिद्ध कर लेता है। (१२) कोई व्यक्ति गोपालन का धंधा स्वीकार करके उन्हीं गायों या उनके बछड़ों को टोले से पृथक निकाल-निकाल कर बार-बार उन्हें मारता-पीटता तथा भूखे रखता है यावत् अपनी रोजी-रोटी कमाता है । स्वयं महापापियों की सूची में प्रसिद्धि पा लेता है। (१३) कोई अत्यन्त नीचकर्म कर्ता व्यक्ति कुत्तों को पकड़कर पालने का धंधा अपना कर उनमें से किसी कुत्ते को या अन्य किसी त्रस प्राणी को मरकर यावत् अपनी आजीविका कमाता है । स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है। (१४) कोई पापात्मा शिकारी कुत्तों को रखकर श्वपाक वृत्ति अपना कर ग्राम आदि के अन्तिम सिरे पर रहता है और पास से गुजरने वाले मनुष्य या प्राणी पर शिकारी कुत्ते छोड़ कर उन्हें कटवाता है, फड़वाता है, यहाँ त तक कि जान से मरवाता है । वह इस प्रकार का भयंकर पापकर्म करने के कारण महापापी के रूप में प्रसिद्ध हो जाता है। सूत्र - ६६४ ___ (१) कोई व्यक्ति सभा में खड़ा होकर प्रतिज्ञा करता है-मैं इस प्राणी को मारूँगा। तत्पश्चात् वह तीतर, मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 75
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy