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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-१२
न पुण्य है, न पाप है, न ही इस लोक के अतिरिक्त अन्य कोई लोक है। शरीर के विनाश से देही का भी विनाश हो जाता है। सूत्र - १३
आत्मा समस्त कार्य करती है, कराती है, किन्तु वह कर्ता नहीं है । अतः आत्मा अकर्ता है । ऐसा वे (अक्रियावादी) कहते हैं। सूत्र-१४
जो ऐसा कहता है, उनके अनुसार यह लोक कैसे सिद्ध होगा । वे प्रमत्त और हिंसा से आबद्ध लोग अन्धकार से सघन अन्धकार की ओर जाते हैं। सूत्र-१५
कुछ दार्शनिक यहाँ पाँच महाभूत कहते हैं और कुछ दार्शनिक आत्मा को छट्ठा महाभूत । उनके अनुसार आत्मा तथा लोक शाश्वत हैं। सूत्र-१६
उन दोनों (आत्मा तथा लोक) का विनाश नहीं होता तथा असत् उत्पन्न नहीं होता । सभी पदार्थ सर्वथा नियति भाव को प्राप्त हैं। सूत्र-१७
कुछेक मूढ़ और क्षणयोगी दार्शनिक कहते हैं कि स्कन्ध पाँच हैं । वे इससे अन्य अथवा अनन्य एवं सहेतुक या अहेतुक आत्मा को नहीं मानते । सूत्र-१८
ज्ञायकों (धातुवादी बोद्धों)ने कहा है कि पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु से शरीर का निर्माण होता है । सूत्र - १९
(उनके अनुसार) चाहे गृहस्थ हो या आरण्यक अथवा प्रव्रजित, जो भी इस दर्शन में आ जाते हैं, वे सभी दुःखों से मुक्त हो जाते हैं। सूत्र - २०
सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे दुःख के प्रवाह का किनारा नहीं पा सकते। सूत्र - २१
सन्धि को जान लेने मात्र से मनुष्य धर्मविद् नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे संसार के पार नहीं जा सकते। सूत्र-२२
सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे गर्भ के पार नहीं जा सकते। सूत्र - २३
सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे जन्म के पार नहीं जा सकते सूत्र - २४
सन्धि को जान लेने मात्र से वे मनुष्य धर्मविद नहीं हो जाते । जो ऐसा कहते हैं, वे दुःख के पार नहीं जा सकते।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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