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आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्'
श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक
[२] सूत्रकृत् अंगसूत्र-२-हिन्दी अनुवाद
श्रुतस्कन्ध-१ अध्ययन-१-समय
उद्देशक-१ सूत्र-१
बोध प्राप्त करो । बन्धन को जानकर उसे तोड डालो। (प्रश्न) महावीर ने बंधन किसे कहा है ? किसे जान लेने से उसे तोडा जा सकता है?
सूत्र-२
जो सचेतन या अचेतन पदार्थों में अल्प मात्र भी परिग्रह-बुद्धि रखता है या दूसरों के परिग्रह का समर्थन करता है, वह अपने वैर को बढ़ाता है। सूत्र-३
जो प्राणियों का स्वयं घात करता है या दूसरों से घात करवाता है अथवा घात करने वाले का समर्थन करता है, वह अपने वैर को बढ़ाता है। सूत्र-४
जो मनुष्य जिस कुल में जन्म लेता है या जिनके साथ रहता है, वह ममत्ववान, अज्ञानी एक दूसरे के प्रति मूर्छित होकर नष्ट होता रहता है। सूत्र-५
धन और भाई-बहिन-ये सभी रक्षा नहीं कर सकते । जीवन के रहते कर्म-बन्धनों को तोड देना चाहिए।
कुछैक श्रमण-ब्राह्मण इन ग्रन्थियों का अतिक्रमण कर, परमार्थ को न जानने के कारण अभिमान करते हैं और वे मनुष्य कामभोग में आसक्त रहते हैं। सूत्र -७
कुछैक दार्शनिक कहते हैं इस संसार में पाँच महाभूत हैं-१.पृथ्वी, २.पानी, ३.अग्नि, ४.वायु, ५.आकाश । सूत्र-८
ये पाँच महाभूत हैं । इनके एकीकरण से एक आत्मा उत्पन्न होती है और इनका विनाश होने पर देही का विनाश हो जाता है। सूत्र-९
जैसे एक ही पृथ्वी-स्तूप विविध रूपों में दिखाई देता है, वैसे ही सम्पूर्ण लोक विज्ञ है, वह विविध रूपों में दिखाई देता है। सूत्र-१०
कुछ दार्शनिक, जो प्रमाद और हिंसा में संलग्न हैं वे उक्त सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं । वह अकेला ही पाप करके तीव्र दुःखों का अनुभव करता है। सूत्र -११
चाहे बालक हो या पण्डित, प्रत्येक की आत्मा पूर्ण है । उसकी आत्मा दिखाई दे रही है या नहीं-ऐसा कहने से उसका सत्त्व औपपातिक नहीं है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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