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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - ३४४ रात-दिन परितप्तमान वे दुष्कृतकारी पीड़ित होकर क्रन्दन करते हैं । वे उस एकान्त कूट, विस्तृत और विषम नरक में बाँधे जाते हैं। सूत्र-३४५ पूर्व के शत्रु रुष्ट होकर मुद्गल और मूसल लेकर उन्हें भग्न करते हैं । वे भिन्नदेवी रुधिर वमन करते हुए अधोमुख होकर भूमि पर गिर जाते हैं। सूत्र - ३४६ सदा कुपित, बुभुक्षित, धृष्ट और विशालकाय, शृगाल एक दूसरे से स्पृष्ट एवं शृङ्खलाबद्ध बहुक्रूरकर्मी नारकों को खा जाते हैं। सूत्र-३४७ ___अति दूर्ग, पंकिल और अग्नि के तप से पिघले हुए लौह के समान तप्त जल युक्त सदाज्वला नदी है । वे उस अतिदूर्गम नदी में प्रवाहमान एकाकी ही तैरते हैं। सूत्र - ३४८ ये दुःख चिरकाल तक अज्ञानी को निरन्तर स्पर्शित करते हैं । हन्यमान का कोई त्राता नहीं है। एक मात्र वह स्वयं ही उन दुःखों का अनुभव करता है। सूत्र - ३४९ पूर्व में जैसा कर्म किया है वही सम्पराय (परभव) में आता है । एकान्त दु:ख के भव का अर्जन कर वे दुःखी अनन्त दुःख का वेदन करते हैं। सूत्र-३५० धीर इन नारकीय दुःखों को सुनकर समस्त लोक में किसी की हिंसा न करे । एकान्त द्रष्टा एवं अपरिग्रही होकर लोक का बोध प्राप्त करे, किन्त वशवर्ती न बने । सूत्र - ३५१ इस तरह तिर्यंच, मनुष्य, देव एवं नारक इन चारों में अनन्त विपाक है । वह सभी को ऐसा समझकर धुत का आचरण करता संयम पालन करता हुआ काल की आकांक्षा करे। -ऐसा मैं कह अध्ययन-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद' मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 31 Page 31
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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