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________________ आगम सूत्र २, अंगसूत्र-२, 'सूत्रकृत्' श्रुतस्कन्ध/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३३१ वे उन अज्ञानियों को रुधिर एवं मवाद से सनी लौह पथ की तरह तप्त भूमि पर चलाते हैं । वे उस दुर्गम स्थान पर चलते हए बैल की तरह आगे ढकेले जाते हैं। सूत्र - ३३२ बहुवेदनामय मार्ग पर गमनशील नारकी सम्मुख गिरने वाली शिलाओं से मारे जाते हैं । सन्तापिनी नामक चिरस्थित एक कुम्भी है, जहाँ असाधु कर्मी संतप्त होते हैं । सूत्र - ३३३ वे नारक को कड़ाही में प्रक्षिप्त कर पकाते हैं । तब वे विदग्धमान ऊपर उछलने लगते हैं। उन्हें द्रोण काक अथवा हिंस्र पशु खा जाते हैं। सूत्र-३३४ वहाँ एक अति उच्च निधूम अग्नि स्थान है । वहाँ वे शोक-तप्त करुण क्रन्दन करते हैं । बकरे की तरह उनके सिर को नीचा कर खण्ड-खण्ड कर देते हैं। सूत्र - ३३५ वहाँ खण्ड-खण्ड में विभक्त उन जीवों को लौह चंचुक पक्षीगण खा जाते हैं। जिसमें पापचेता प्रजा पीडित की जाती है ऐसी संजीवनी भूमि चिरस्थिति वाली है। सूत्र - ३३६ बेबशर्ती नारक को प्राप्त कर श्वापदवत् तीक्ष्ण शूलों से पीड़ित करते हैं । वे शूल विद्ध करुण रुदन करते हैं। वे एकान्त दुःखी तथा द्विविध ग्लान होते हैं । सूत्र - ३३७ नरक में सदा प्रज्वलित विशाल-वध स्थल है। जिसमें बिना काष्ठ अग्नि जलती है । वहाँ बहक्रूरकर्मी निवास करते हैं, कुछ चिरस्थित नारक उच्च क्रन्दन करते हैं। सूत्र - ३३८ वे महती चिता का समारम्भ कर करुण क्रन्दी नारकों को उसमें फेंक देते हैं । वहाँ अग्नि में सिंचित घी की तरह अशुभकर्मी नारक पिघल जाता है। सूत्र-३३९ वह सम्पूर्ण स्थान सदा तप्त, अति दुःखधर्मी है । जहाँ हाथ पैर बांधकर वे शत्रु की तरह डंडों से पीटते हैं । सूत्र - ३४० अज्ञानी की पीठ प्रहार से भग्न की जाती है और शिर लौह घन से भेदित होता है। वे भिन्न देही फलक की तरह तप्त आरों से नियोजित किये जाते हैं। सूत्र - ३४१ उस असाधुकर्मी रूद्र के बाण चुभाकर वे उससे हस्ति योग्य भार वहन कराते हैं । उसकी पीठ पर एक, दो या तीन नरकपाल बैठकर मर्म स्थान को बींध डालते हैं। सूत्र - ३४२ वे अज्ञानी को प्रविज्जल एवं कंटकाकीर्ण भूमि पर बलात् चलाते हैं । विविध बन्धनों से बाँधते हैं । मूर्च्छित होने पर उन्हें कोटवलि की तरह फेंक देते हैं। सूत्र - ३४३ नारकीय अन्तरीक्ष में महाभितप्त वैतालिक नामक पर्वत है, वहाँ बहक्र रकर्मी नारकीय जीव हजारों बार क्षतविक्षत होते हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् । (सूत्रकृत)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 30
SR No.034668
Book TitleAgam 02 Sutrakrutang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages114
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 02, & agam_sutrakritang
File Size3 MB
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