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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अध्ययन-२-शय्येषणा उद्देशक-१ सूत्र-३९८ साधु या साध्वी उपाश्रय की गवेषणा करना चाहे तो ग्राम या नगर यावत् राजधानी में प्रवेश करके साधु के योग्य उपाश्रय का अन्वेषण करते हुए यदि यह जाने कि वह उपाश्रय अंडों से यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है तो वैसे उपाश्रय में वह साधु या साध्वी स्थान, शय्या और निषीधिका न करे । वह साधु या साध्वी जिस उपाश्रय को अंडों यावत् मकड़ी के जाले आदि से रहित जाने; वैसे उपाश्रय का यतनापूर्वक प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके उसमें कार्योत्सर्ग, संस्तारक एवं स्वाध्याय करे। यदि साधु ऐसा उपाश्रय जाने, जो कि इसी प्रतिज्ञा से प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व का समारम्भ करके बनाया गया है, उसीके उद्देश्य से खरीदा गया है, उधार लिया गया है, निर्बल से छीना गया है, उसके स्वामी की अनुमति के बिना लिया गया है, तो ऐसा उपाश्रय; चाहे वह पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत यावत् स्वामी द्वारा आसेवित हो या अनासेवित, उसमें कायोत्सर्ग, शय्या-संस्तारक या स्वाध्याय न करे । वैसे ही बहुत-से साधर्मिक साधुओं, एक साधर्मिणी साध्वी, बहुत-सी साधर्मिणी साध्वीयों के उद्देश्य से बनाये हुए आदि उपाश्रय में कायोत्स-र्गादि का निषेध समझना चाहिए। वह साधु या साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो बहुत-से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों एवं भिखारियों के उद्देश्य से प्राणी आदि का समारम्भ करके बनाया गया है, वह अपुरुषान्तरकृत आदि हो, तो ऐसे उपाश्रय में कायोत्सर्ग आदि न करे। वह साधु या साध्वी यदि ऐसा उपाश्रय जाने; जो कि बहत-से श्रमणों, ब्राह्मणों, अतिथियों, दरिद्रों एवं भिखमंगों के खास उद्देश्य से बनाया तथा खरीदा आदि गया है, ऐसा उपाश्रय अपुरुषान्तरकृत आदि हो, अनासेवित हो तो, ऐसे उपाश्रय में कायोत्सर्गादि न करे। इसके विपरीत यदि ऐसा उपाश्रय जाने, जो श्रमणादि को गिन-गिन कर या उनके उद्देश्य से बनाया आदि गया हो, किन्तु वह पुरुषान्तरकृत है, उसके मालिक द्वारा अधिकृत है, परिभक्त तथा आसेवित है तो उसका प्रतिलेखन तथा प्रमार्जन करके उसमें यतनापूर्वक कायोत्सर्ग, शय्या या स्वाध्याय करे। वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसा उपाश्रय जाने कि असंयत गृहस्थ ने साधुओं के निमित्त बनाया है, काष्ठादि लगा कर संस्कृत किया है, बाँस आदि से बाँधा है, घास आदि से आच्छादित किया है, गोबर आदि से लीपा है, संवारा है, घिसा है, चिकना किया है, या ऊबड़खाबड़ स्थान को समतल बनाया है, सुगन्धित द्रव्यों से सुवासित किया है, ऐसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो उनमें कायोत्सर्ग, शय्यासंस्तारक और स्वाध्याय न करे । यदि वह यह जान जाए कि ऐसा उपाश्रय पुरुषान्तरकृत यावत् आसेवित है तो प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके यतनापूर्वक उसमें स्थान आदि क्रिया करे । सूत्र-३९९ वह साधु या साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने कि असंयत गृहस्थ ने साधुओं के लिए जिसके छोटे द्वार को बड़ा बनाया है, जैसे पिण्डैषणा अध्ययन में बताया गया है, यहाँ तक कि उपाश्रय के अन्दर और बाहर ही हरियाली ऊखाड़ऊखाड़ कर, काट-काट कर वहाँ संस्तारक बिछाया गया है, अथवा कोई पदार्थ उसमें से बाहर नीकाले गए हैं, वैसा उपाश्रय यदि अपुरुषान्तरकृत यावत् अनासेवित हो तो वहाँ कायोत्सर्गादि क्रियाएं न करें। यदि वह यह जाने कि ऐसा उपाश्रय पुरुषान्तरकृत है, यावत् आसेवित है तो उसका प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके यतनापूर्वक स्थान आदि करे। वह साधु या साध्वी ऐसा उपाश्रय जाने कि असंयत गृहस्थ, साधुओं के निमित्त से पानी से उत्पन्न हुए कन्द, मूल, पत्तों, फूलों या फलों को एक स्थान से दूसरे स्थान में ले जा रहा है, भीतर से कन्द आदि पदार्थों को बाहर मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 69
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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