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आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार'
श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक
अध्ययन-११- शब्दसप्तिका-४ सूत्र-५०२
साधु या साध्वी मृदंगशब्द, नंदीशब्द या झलरी के शब्द तथा इसी प्रकार के अन्य वितत शब्दों को कानों से सूनने के उद्देश्य से कहीं भी जाने का मन में संकल्प न करे । साधु या साध्वी कईं शब्दों को सुनते हैं, जैसे कि वीणा के शब्द, विपंची के शब्द, बद्धीसक के शब्द, तूनक के शब्द या ढोल के शब्द, तुम्बवीणा के शब्द, ढंकुण के शब्द, या इसी प्रकार के तत-शब्द, किन्तु उन्हें कानों से सूनने के लिए कहीं भी जाने का विचार न करे।
साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि ताल के शब्द, कंसताल के शब्द, लतिका के शब्द, गोधिका के शब्द या बाँस की छड़ी से बजने वाले शब्द, इसी प्रकार के अन्य अनेक तरह के तालशब्दों को कानों से सूनने की दृष्टि से किसी स्थान में जाने का मन में संकल्प न करे । साधु-साध्वी कईं प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि शंख के शब्द, वेणु के शब्द, बाँस के शब्द, खरमुही के शब्द, बाँस आदि की नली के शब्द या इसी प्रकार के अन्य शुषिर शब्द, किन्तु उन्हें कानों से श्रवण करने के प्रयोजन से किसी स्थान में जाने का संकल्प न करे। सूत्र-५०३
वह साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं, जैसे कि-खेत की क्यारियों में तथा खाईयों में होने वाले शब्द यावत् सरोवरों में, समुद्रों में, सरोवर की पंक्तियों या सरोवर के बाद सरोवर की पंक्तियों के शब्द, अन्य इसी प्रकार के विविध शब्द, किन्तु उन्हें कानों से श्रवण करने के लिए जाने के लिए मन में संकल्प न करे।
साधु या साध्वी कतिपय शब्दों को सुनते हैं, जैसे कि नदी तटीय जलबहुल प्रदेशों (कच्छों) में, भूमिगृहों या प्रच्छन्न स्थानों में, वृक्षों में, सघन एवं गहन प्रदेशों में, वनों में, वन के दुर्गम प्रदेशों में, पर्वतों या पर्वतीय दुर्गों में तथा इसी प्रकार के अन्य प्रदेशों में, किन्तु उन शब्दों को कानों से श्रवण करने के उद्देश्य से गमन करने का संकल्प न करे।
साधु या साध्वी कईं प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं, जैसे-गाँवों में, नगरों में, निगमों में, राजधानी में, आश्रम, पत्तन और सन्निवेशों में या अन्य इसी प्रकार के नाना रूपों में होने वाले शब्द किन्तु साधु-साध्वी उन्हें सूनने की लालसा से न जाए।
साधु या साध्वी के कानों में कई प्रकार के शब्द पड़ते हैं, जैसे कि-आरामगारों में, उद्यानों में, वनों में, वनखण्डों में, देवकुलों में, सभाओं में, प्याऊओं में, या अन्य इसी प्रकार के स्थानों में, किन्तु इन शब्दों को सुनने की उत्सुकता से जाने का संकल्प न करे ।
साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-अटारियों में, प्राकार से सम्बद्ध अट्टालयों में, नगर के मध्य में स्थित राजमार्गों में; द्वारों में या नगर-द्वारों तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में, किन्तु इन शब्दों को सूनने के हेतु किसी भी स्थान में जाने का संकल्प न करे।
साधु या साध्वी कईं प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-तिराहों पर, चौको में, चौराहों पर, चतुर्मुख मार्गों में तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में, परन्तु इन शब्दों को श्रवण करने के लिए कहीं भी जाने का संकल्प न करे । साधु या साध्वी कई प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं, जैसे कि-भैंसों के स्थान, वृषभशाला, घुड़साल, हस्तिशाला यावत् कपिंजल पक्षी आदि के रहने के स्थानों में होने वाले शब्दों या इसी प्रकार के अन्य शब्दों को, किन्तु उन्हें श्रवण करने हेतु कहीं जाने का मन में विचार न करे।
साधु या साध्वी कईं प्रकार के शब्द सुनते हैं, जैसे कि-जहाँ भैंसों के युद्ध, साँड़ों के युद्ध, अश्व युद्ध, यावत् कपिंजल-युद्ध होते हैं तथा अन्य इसी प्रकार के पशु-पक्षियों के लड़ने से या लड़ने के स्थानों में होने वाले शब्द, उनको सूनने हेतु जाने का संकल्प न करे।
साधु या साध्वी के कानों में कई प्रकार के शब्द पड़ते हैं, जैसे कि-वर-वधू युगल आदि के मिलने के स्थानों में या वरवधू-वर्णन किया जाता है, ऐसे स्थानों में, अश्वयुगल स्थानों में, हस्तियुगल स्थानों में तथा इसी प्रकार के अन्य कुतूहल एवं मनोरंजक स्थानों में, किन्तु ऐसे श्रव्य-गेयादि शब्द सूनने की उत्सुकता से जाने का संकल्प न करे।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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