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________________ आगम सूत्र १, अंगसूत्र-१, 'आचार' श्रुतस्कन्ध/चूलिका/अध्ययन/उद्देश/सूत्रांक अवग्रह की अनुज्ञा प्राप्त करे उतने समय तक, उतने नियत क्षेत्र में आम्रवन में ठहरेंगे, इसी बीच हमारे समागत साधर्मिक भी इसी का अनुसरण करेंगे। अवधि पूर्ण होने के पश्चात् यहाँ से विहार कर जाएंगे। उस आम्रवन में अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करके ठहरने पर क्या करे ? यदि साधु आम खाना या उसका रस पीना चाहता है, तो वहाँ के आम यदि अण्डों यावत् मकड़ी के जलों से युक्त देखे-जाने तो उस प्रकार के आम्रफलों को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी उस आम्रवन के आमों को ऐसे जाने कि वे हैं तो अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित, किन्तु वे तीरछे कटे हुए नहीं है, न खण्डित हैं तो उन्हें अप्रासुक एवं अनैषणीय मानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे । यदि साधु या साध्वी यह जाने कि आम अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, साथ ही तीरछे कटे हुए हैं और खण्डित हैं, तो उन्हें प्रासुक और एषणीय जानकर प्राप्त होने पर ग्रहण करे। यदि साधु या साध्वी आम का आधा भाग, आम की पेशी, आम की छाल या आम का गिरि, आम का रस, या आम के बारीक टुकड़े खाना-पीना चाहे, किन्तु वह यह जाने कि वह आम का अर्ध भाग यावत् आम के बारीक टुकड़े अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हैं तो उन्हें अप्रासुक एवं अनैषणीय मानकर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी यह जाने कि आम का आधा भाग यावत् आम के छोटे बारीक टुकड़े अंडों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित हैं, किन्तुं वे तीरछे कटे हुए नहीं हैं, और न ही खण्डित हैं तो उन्हें भी अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे। यदि साधु या साध्वी यह जान ले कि आम की आधी फाँक से लेकर आम के छोटे बारीक टुकड़े तक अंडों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तीरछे कटे हुए भी हैं और खण्डित भी हैं तो उसको प्रासुक एवं एषणीय मानकर प्राप्त होने पर ग्रहण कर ले। वह साधु या साध्वी यदि इक्षुवन में ठहरना चाहे तो जो वहाँ का स्वामी या उसके द्वारा नियुक्त अधिकारी हो, उससे क्षेत्र-काल की सीमा खोलकर अवग्रह की अनुज्ञा ग्रहण करके वहाँ निवास करे । उस इक्षुवन की अवग्र-हानुज्ञा ग्रहण करने से क्या प्रयोजन ? यदि वहाँ रहते हुए साधु कदाचित् ईख खाना या उसका रस पीना चाहे तो पहले यह जान ले कि वे ईख अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तो नहीं है ? यदि वैसे हों तो साधु उन्हें अप्रासुक अनैषणीय जानकर छोड़ दे । यदि वे अंडों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त तो नहीं हैं, किन्तु तीरछे कटे हुए या टुकड़े-टुकड़े किये हुए नहीं है, तब भी उन्हें पूर्ववत् जानकर न ले । यदि साधु को यह प्रतीति हो जाए कि वे ईख अंडों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं, तीरछे कटे हुए तथा टुकड़े-टुकड़े किये हुए हैं तो उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जानकर प्राप्त होने पर वह ले सकता है । यह सारा वर्णन आम्रवन की तरह समझना चाहिए। यदि साधु या साध्वी ईख के पर्व का मध्यभाग, ईख की गँडेरी, ईख का छिलका या ईख के अन्दर का गर्भ, ईख की छाल या रस, ईख के छोटे-छोटे बारीक टुकड़े, खाना या पीना चाहे व पहले वह जान जाए कि वह ईख के पर्व का मध्यभाग यावत् ईख के छोटे-छोटे बारीक टुकड़े अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हैं, तो उस प्रकार के उन इक्षु-अवयवों को अप्रासुक एवं अनैषणीय जानकर ग्रहण न करे । साधु साध्वी यदि यह जाने कि वह ईख के पर्व का मध्यभाग यावत् ईख के छोटे-छोटे कोमल टुकड़े अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से तो रहित हैं, किन्तु तीरछे कटे हुए नहीं है, तो उन्हें पूर्ववत् जानकर ग्रहण न करे, यदि वे इक्षु-अवयव अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से रहित हैं तथा तीरछे कटे हुए भी हैं तो उन्हें प्रासुक एवं एषणीय जानकर मिलने पर वह ग्रहण कर सकता है। यदि साधु या साध्वी (किसी कारणवश) लहसून के वन पर ठहरना चाहे तो पूर्वोक्त विधि से अवग्रहानुज्ञा ग्रहण करके रहे । किसी कारणवश लहसून खाना चाहे तो पूर्व सूत्रवत् पूर्वोक्त विधिवत् ग्रहण कर सकता है । इसके तीनों आलापक पूर्व सूत्रवत् समझना। यदि साधु या साध्वी (किसी कारणवश) लहसून, लहसून का कंद, लहसून की छाल या छिलका या रस अथवा लहसून के गर्भ का आवरण खाना-पीना चाहे और उसे ज्ञात हो जाए कि यह लहसून यावत् लहसून का बीज मुनि दीपरत्नसागर कृत् (आचार) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 101
SR No.034667
Book TitleAgam 01 Acharang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 01, & agam_acharang
File Size4 MB
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