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________________ भी वणकी अज्ञानना, कहता है जीतमल । तियासी भर्म विध्वंशणे, चोरासीमें गल (४७|| जीतू तो होती कही, अन होती कही नांह । भीखणजीकी रीतकु, छोडी. कैसे जाय ॥४८॥ भीखण अपनै गुरुन, कहै अज्ञान अबोध । भीखणकु कहे जीतमल, तो इनमें कहा विरोध ॥४९॥ भगवंत दया फरमावता, ये मंहां बतावै पाप । ओरनकू मुर्ख कहे, ये मूरख बन गयो आप ॥१०॥ दया एक धर्मकी, कहदी धर्म दुआर ॥ दया जो होती पापकी, तो कहतो पापदुआर ॥५१॥ दोनो भाव दया तणां तो कहता दोनु द्वार । दया एक सम्वर सही, कह दीनी निरधार ॥५२॥ जगह जगह सूत्रन विशे, दया तणां अधिकार । निंदक पाप कैसे कहै, किसे सूत्र अनुसार ॥५३॥ पीछो जवाब आवै नहि, जद मुख लेवै मोड । अपढ पंडित यहका पकर, जंग मचावै दौड ॥५४॥ वर्तमान कलीकालमें, नहीं कोइ केवलज्ञानी । गणधर पूर्वधर को नहि, है सूत्र प्रमाणी ॥५५॥ सूत्रोंमे कही है नहीं, पापकी दया अणुकंपा । सूत्र विनां बकता फिरे, तु आगे खावैधका ॥५६॥ समगित नहीं भगवानकी, ज्याके दया नहीं घट माय । गति प्राप्ति कैसे हुवै, पडै ये यमघर जाय ॥५७।। प्रीतउदय मुनि कहत है, सुनियों भाइ सुजान । दया धर्मके काममें, झूठी पक्ष मत तान ॥५८॥ જેન–આ દલિલો બેટી છે. હરિકેશી રૂષીને મારતા માહણેને (બ્રાહ્મણોને) તંદુક વૃક્ષવાસી યક્ષે, માર મારીને હાંકી કાઢયા હતા; ભગવાને આવા કાર્યોમાં દયા બતાવી છે; અને એ દયાને ગણધર મહારાજે સૂત્રમાં ગુંથી છે, તે Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Suratwww.umaragyanbhandar.com
SR No.034644
Book TitleTerapanthi Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Yati
PublisherPremchand Yati
Publication Year1917
Total Pages330
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size24 MB
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