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भूमिका। अति प्राचीन समयसे सबही देशोंके रहनेवाले इस बातको जानते हैं कि, भारत. वर्षके निवासी गण वैज्ञानिक विषयोंमें अत्यन्त पारदर्शी होते आये हैं । विलायतके पंडितगण इस भारतवर्षकोही गणितविद्याका मूल स्थान बतलाकर इसकी प्रतिष्ठा करते हैं । इङ्गलैण्डके तत्त्वदर्शीलोग जब भारतवर्षीय ग्रंथादिका विचार करनेको तैयार होते हैं तब वे गणितात्मक ज्योतिषशास्त्रकी अपार गवेषण निहार देशकालको विचार करके विस्मयसागरमें गोतेखाने लगते हैं । उप्त गणितशास्त्रके अत्यन्त प्राचीन, सर्वमान्य अठारह सिद्धान्तोमेंसे "श्रीसूर्यसिद्धान्त” नामक ग्रंथको बहुतही कम भारतवासी जानते हैं । अनादर प्राप्त करते २ इस गणितशास्त्रके मुख्य २ ग्रन्थ रत्न कालकी सर्व संहारिणी शक्तिके नीचे दबते चलेजाते हैं । भारतवासियोंने अपने पूर्व पुरुषोंकी कीर्तिको रक्षित करनेमें महा उदासीनता प्रगट की है। मैं आशा नहीं करसक्ता कि, इस समय वह मुझ तुच्छके कहनेसे उदासीनताको छोडदेंगे। तथापि अपना कर्तव्य समय यह सानुवाद ग्रन्थ अत्यन्त परिश्रम करके वर्तमान ज्योतिष्क मण्डली और साधारणके निकट प्रकाशित कर आनन्द प्राप्त करताहूं।
आजकल जो लोग विद्वान् ।गनेजाते और जिनके करने धरनेसे कुछ हो सकता है, उनसे बहुतसे तो शास्त्रको देखतेतक नहीं। बहुतसे ऐसे है कि, स्वयं तो शास्त्रको जानते नहीं परन्तु अपनी पंडिताई बराबर छोंके चले जाते हैं । उपरोक्त ग्रंथ विमुखता और अभिमानताही तो सब काम बिगाड रहीहै, और बगबर ज्योतिषी लोगोंके ऊपर अपना अधिकार करती चलीजाती है । यहांतक कि, अब इस अदूरदर्शिताका फलभी कुछ २ फलने लगाहै । माजकल ज्योतिषी लोग पेट-चिन्तामें लगे रहकर भली भांतिसे उस विद्याको नहीं पढते पढाते । इसी कारण कम परिश्रम करनेकी इच्छासे अनेक करण ग्रंथोंको विनाही देखे भाले, उन करण ग्रंथोंके मूल श्रीसूर्यसिद्धान्तका नाम लेकर और ग्रंथोंकी सारिणीकी सहायतासे तिन करण ग्रंथोंके फलको प्राप्त हो इस अप्रूव ग्रंथकी दुहाई दिया करते हैं । परन्तु इस विषयका सूची. पत्र बनाते हुए-कि उनमें से कितनोंने श्रीसूर्यसिद्धान्तका अवलोकन किया है एक साथ दुःखित होना पडता है।
सूर्यसिद्धान्तानुगामी सम्प्रदायके सिवाय भारतवर्ष में एक नये प्रकारके सिद्धान्त पूजकोंकी सृष्टि हुई है । इस सिद्धान्तके उत्पन्न करनेवाले अर्द्ध कुक्कुटी जरती न्या. यके समान ज्योतिषशास्त्रमें प्रवेश करनेके पहलेही अपनेको पंडित और ज्योतिषी कहलाना चाहते हैं। कोई नैयायिक, कोई थवईके कार्यमें महाबुद्धिमान्, कोई साधारण गणित तीर्थाभिमानी, कोई यश प्राप्त करनेके लिये नवीनमतके प्रचार करनेमें निपुण, कोई किसी ज्योतिषीका छात्र, या कोई साहित्य पारदर्शी; बस ! ऐसे लोगही इसमें प्रधान उद्योगी हैं। कोई भास्कराचार्यके वनाये सिद्धान्त शिरोमणीके
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