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... उदाहरणम् ।"
उदाहरणम् । अहर्गणानयन (१ अ० ५१ श्लो०)। शाके १८१७ के प्रथमदिनका अहर्गण कृतयुगके शेषतक १९५३७२०००० त्रेता और द्वापरमान २१६०००० और कलियुगके बीतेहुए ४९९६ मिलानेसे १९५५८८४९९६ कल्पगताब्दवर्ष हुआ। इसको १२ से गुणा करनेपर २३४७०६१९९५२ मास हुए । इस संख्याका अधि. मास संख्या १५९३३३६ से गुणाकरनेपर ३७३९६५८३७११८३९८७२ 'हुए । इनको सौरमासकी संख्या ५१८४०००० से भाग करनेपर ७२१३८४७१६ हुए मागावशेष छोडे गये । यह संख्या माससंख्यामें मिलाकर २४१९२००४६६८ इस माससंख्याको ३० तीससे गुणाकरके मधुशुक्लादि तिथिसंख्या १८ मिलानेसे ७२५७६०१४००५८ दिन हुए । इस दिन संख्याको तिथि क्षय २५०८२२५२ से गुणा करनेपर १८२०३६९८७२४४९००५०६१६ हुए । इसको चान्द्र दिन १६०३००००८० से भाग करके भागावशेषको छोड देनेसे ११३५६०१८६०० ये लब्ध हुए यह सख्या दिनसंख्यासे घटानेपर ७१४४०४१२१४५८ शेष रही । शनिवार होनेसे ७१४४०४१२१४५९ अहर्गण हुआ।
मध्यानयन । (१ अ० ५३ श्लोक ) अहर्गणको सूर्यभगण ४३२०००० से गुणा करनेपर ३०८६२२५८०४७०२८८०००० ये हुए । इस संख्याको सौरदिन १५७७९१७८२८ से भाग करनेपर लब्ध १९५५८८४९९५ भगण हुए। शेष १५७४६८९१४० को १२ से गुणकरके सौरदिनसे भाग करनेपर ११ राशि हुई और अवशेषको ३० से गुण करके सौरदिनसे भाग करनेपर २९ अश हुए । बाकीकी कला विकलादि करके १५ कला ४८ विकला और ९ अनुकला हुई। शेष छोड दिये गऐ। भगण संख्याको छोड देनेसे रविमध्य ११ । २९ । १५ । ४८ । ९ हुआ।
देशान्तरानयन (१ अ० ६० श्लो०)। भूकर्ण १६०० योजनके वर्गको १० से गुणाकरनेपर २५६००००० हुए (इसका मूल निकालनेसे ५०६० योजन हुए। ५ अंगुल छायाके वर्ग करनेसे २५ और शंकुवर्ग १४४ मिलाकर मूल निकालनेसे १३ हुए । यह छायाकण है विषुवदिनके शंकु १२ से त्रिज्या (३४३८ ) को गुणाकरनेसे ४१२५६ हुए । इस संख्याको छायाकर्ण १३ से भाग करनेपर ३१७३ भाग फल लम्बज्या हुई इसको योजन संख्या ५०६० से गुणाकरनेपर १६०५५३८० हुए । इसको त्रिज्या ३४३८ से भाग करनेपर स्फुट भूपरिधि ४६६९ योजन हुई
कसी देशकी योजनसंख्या १५० है । सूर्यकी दैनिक भुक्ति कलासे गुणा करने . पर ८८.० हुए । इसको स्फुट भूपरिधिसे भाग करनेपर १। ५३ कलाविकला हुई।
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