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द्वितीय स्तबक ]
भाषानुवादसहिता
४. स्वप्नाधिष्ठानवादः केचित् स्वमोऽप्येवं मूलाज्ञानैकहेतुको भवति । निद्राजन्यतया प्रतिभामात्रो ब्रह्मबोधवाध्य इति ॥ २१ ॥
धीर्बाध इति । बिम्बासंनिधिसहकृतमुकुरप्रत्यक्षं मूलाज्ञानानिवर्तकमपि स्वविरुद्धतत्कार्यविक्षेपनिवर्तकमेवेत्यर्थः। तथा च ब्रह्मज्ञानस्य निवर्तकत्वपक्षेऽपि ताङ्मुकुरप्रत्यक्ष मुद्गरप्रहारो घटस्येव प्रतिबिम्बस्य तिरोधायकमेवेत्युभयथा न प्रतिबिम्बानुवृत्तिरिति भावः । ननु तर्हि तस्य व्यावहारिकत्वापत्तिरित्याङ्कयाऽऽह-विम्बादिति ।
बिम्बसंनिधानस्वच्छत्वादिदोषजन्यत्वात् प्रातिभासिकमित्यर्थः । तथा च अविद्यातिरिक्तदोषाजन्यत्वमेव व्यावहारिकत्वप्रयोजकमिति भावः ॥ २०॥
एवं स्वमोऽप्यवस्थाशून्येऽहंकारोपहिते शुद्ध वा चैतन्ये ऽध्यासात् मूलाज्ञानोपादानक एव, आगन्तुकनिद्रादिदोषजन्यत्वात् प्रातिभासिकः ब्रह्मज्ञानबाध्यश्चेति मतान्तरमाह-केचिदिति । ब्रह्मज्ञानकबाध्यत्वेऽपि स्वप्नस्य प्रबोधे सति तिरोधानान्न जाग्रहशायामनुवृत्तिरिति भावः ॥ २१ ॥
मुकुरका प्रत्यक्ष यद्यपि मूलाज्ञानका निवर्तक तो नहीं होगा, तथापि स्वविरुद्ध जो मूलाज्ञानका विक्षेपरूप कार्य है उसका निवर्तक होगा ही। इसलिए ब्रह्मज्ञान मूलाज्ञानका निवर्तक है, इस पक्षमें भी उक्त (बिम्बासन्निधिसहकृत) मुकुरका (दर्पणका) प्रत्यक्ष, जैसे मुद्गरप्रहार घटका तिरोधायक होता है, वैसे ही प्रतिबिम्बका तिरोधायक होता है, यों दोनों प्रकारोंसे प्रतिबिम्बानुवृत्ति नहीं होती। यदि कहा जाय कि ऐसी दशा में प्रतिबिम्बमें व्यावहारिकत्वकी आपत्ति होगी ? तो उसपर कहते हैंइस प्रतिबिम्बमें बिम्बसंनिधान और स्वच्छत्वादि दोषजन्यत्व होनेसे प्रातीतिकता (प्रातिभासिकता) ही है अर्थात् अविद्यातिरिक्त दोषसे अजन्यत्व ही व्यावहारिकताका प्रयोजक है, यह भाव है ॥ २० ॥
___ 'केचित स्वमो०' इत्यादि। इसी रीतिसे स्वप्न भी अवस्थाशून्य अहकारोपहित अथवा शुद्ध चैतन्यमें अध्यस्त है, अतः उसका उपादान मूलाज्ञान ही है, एवं आगन्तुक निद्रा आदि दोषसे जन्य होनेके कारण प्रातिभासिक है, इसलिए ब्रह्मबोधसे बाध्य है; ऐसा कई एक मानते हैं। यद्यपि यह स्वप्न केवल ब्रह्मज्ञानसे ही बाध्य है, तथापि प्रबोध होनेपर तिरोहित हो जानेके कारण उसकी जाग्रद्-दशामें अनुवृत्ति नहीं होती ॥ २१ ॥
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