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( ३ ) इस ग्रन्थका भाषानुवाद स्वर्गीय महामहोपाध्याय पण्डितप्रवर श्री हाथीभाई शास्त्रीजीके करकमलोंसे सम्पन्न हुआ है । हमें इस बातका हार्दिक खेद है कि शास्त्रीजी इसके प्रकाशनके पूर्व ही भौतिक नश्वर देहका परित्याग कर कीर्तिशेष हो गये।
इस ग्रन्थका प्रथम संस्करण केसरवल्लीनामक संस्कृत टीकाके साथ ३० वर्ष पूर्व वाणीविलास प्रेस श्रीरङ्गम्से प्रकाशित हुआ था, जो अब दुष्प्राप्य है । हमें आशा है कि ऐसे महापुरुषकी लेखनीसे प्रसूत संस्कृतटीका तथा हिन्दीभाषानुवादसे विभूषित इस उत्तम ग्रन्थका वेदान्तप्रेमी जनतामें अवश्य समादर होगा। अलं पल्लवितेनेति शम् ।
काशी विजयादशमी
विनीत श्रीकृष्णपन्त
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