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श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। ३ 处会分会分给爸爸分食分会会长分会分会分会分会
इस तरह कह करके उन्होंने भगवती तो पूरी कराई । चोमासेके समाप्त होनेपर भिखुनजी उस भगवतीजीके पुस्तकको ले करके चलने लगे । तब रुघनाथजीने कहा:-'पुस्तक छोडते जाओ।' परन्तु भिखुनजी तो लेकरके ही चले । पीछेसे दो साधुओंको भेज करके रुपनाथजीने वह पुस्तक मंगवा लिया । बस ! इसीसे आपके हृदय मंदिरमें क्रोधाग्नि प्रज्वलित हुई और आपने यही निश्चय किया कि-' मैं नया मत निकालु और रुघनाथजीको कष्ट दूं।' अस्तु !
___ आपने मेडतेसे विहार करके मेवाडमें आकर राजनगरमें चातुर्मास किया। यहाँपर सागर गच्छके यतिका एक भंडार था। उस भंडारमेंसे श्रावक लोग उसको, जो चाहिये, पुस्तकें देने लगे । परन्तु ठीक है । स्याद्वाद शैलीयुक्त, अनंतनयात्मक श्रीजिनवचनके सच्चे रहस्यको, समुद्र समान गंभीर बुद्धिवाला भी गुरुगमताके सिवाय, प्राप्त नहीं कर सकता है, तो भिखुनजी जैसे, अव्वल तो मूर्तिके उत्थापक, गुरुगमताका नाम निशान नहीं,और टब्बा-टब्बीसे काम लेनेवालेको,सच्चा रहस्य न मिले और वैपरीत्य पैदा हो, इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं ।
ठीक हुआ भी वैसाही। ज्यों २ भिखुननी अपने आपसे पढता गया त्यों २ उसके ऊपर अनेक प्रकारकी शंकाएं और कुतर्क सवार हाने लगे । अन्तमें अविधिसे सूत्र पढनेका प्रभाव, भिखुनजीके ऊपर बराबर पडा। भिखुनजीने पहिले इस दयाका ही शिरच्छेद किया, जो कि जिन शासमका प्रधान मंत्र है-जिम शासनका प्रधान उद्देश्य है । भिखुनजी ने इस प्रकारकी प्ररूपणा कीः
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