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॥ अर्हम् ॥ श्रीविजयधर्मसूरिभ्यो नमः 1
श्वेताम्बर तेरापंथ -- मत समीक्षा |
पंचमकालका प्रभावही ऐसा है कि- ज्यों ज्यों काल जाता है, त्यों २ एक के पीछे एक ऐसे मतमतान्तर बढते ही जाते हैं । पहिले महावीर देवकी पाट परम्परामै जो लोग चले आते थे, उन्होंमेंसे, वीर निर्वाण ६०९ वर्ष के पश्चात् शिवभूति नामक मुनिने दिगम्बर मत चलाया । जिसने 'मूर्तिको नग्न मानना,' 'स्त्रीको मोक्ष न मानना' इत्यादि वातोंकी प्ररूपणा की। इतना ही क्यों ? इसकी सिद्धिके लिये अङ्गादि शास्त्रोंको विच्छेद मानकरके अभिनव शास्त्र बनाए । इसके बाद १७०९ में, लोंका लेखकके चलाए हुए मतमेंसे लवजी ऋषिने ढुंढक पंथ ( स्थानकवासी ) निकाला । जिसने मूर्तिपूजन वगैरहका निषेध किया । इसकी सिद्धिके लिये, सूत्रों जहाँ २ मूर्ति पूजाका अधिकार आया, उसके अर्थों को बदलने में बहादुरी की । तदनन्तर इसी ढुंढक पंथमें से एक 'तेरा - पंथ' मत निकला हुआ है । जिसकी समीक्षा करना, आजके
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