________________
R
श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा। ७ * * * *
* * * * * भीखुनजी जब समुदायसे बाहर हुए तब वे वखतावर, रूपचन्द भारमल, गिरधर वगैरह बारह और, वह मिलकर, तेरह आदमी निकले थे। बस ! इसीसें 'तेरापंथ ऐसा नाम पड़ा है । सुनते हैं रूपचन्द आदि दो साधु तो किसी कारणसे थोडे ही समयमें भिखुनजीको छोड कर, रुघनाथजीको मिल गये थे । ” ।
बस । इस प्रकारसे तेरापंथ ' की उत्पत्ति हुई है ।
अंब भिखुनजी ग्रामानुग्राम विचरने लगा। और खुलखुल्ला दया-दानका निषेध करने लगा । बहुनसे पंडित लोग उससे शास्त्रार्थ करके उसको पराजय करते थे । परन्तु गाढ मि. थ्यात्वके प्रभावसे वह कैसे मान सकता था ? । उसके अभिनिवेश-मिथ्यात्वरूप भूमि गृहमें पंडितोंके-विद्वानोंके वचनरूप किरणें घुसने नहीं पाती थीं । जब भिखुननी शास्त्रार्थमें किसीसे हार जाता था, तब वह कहता था:-'मेरी बुद्धिकी न्यूनतासे मैं पराजय होता हूं। परन्तु बात तो जो मैं कहता हूं वही सत्य है। बस ! ऐसी २ बातें करके अपने हठवादको नहीं छोडता था।
प्रियपाठक ! तेरापंथके मूल उत्पादक भिखुनजीके दादे परदादे लोग सूत्रमेंसे ' मूर्ति' विषयक जो २ रकमेंथी उसकी तो चोरी करही चुके थे । अब भिखुनजीने मूल दो और बा. तोका फेरफार किया। यह तो सब कोई समझ सकते हैं किवहीमें से एक दो रकमकी चोरी कोई करना चाहे तो उसको बहुत रकमका फेरफार करना पडता हैं । बस ! इसी नियमानुसार दया और दान ये दो रकमें उडानेमें और कौन २ बातों में फेरफार करना पड़ा, तथा उसकी सिद्धिके लिये उसको कैसे २ मन्तव्य प्रकट करने पड़े यह बात आगे चलकरके आप पढेंगे।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com