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६ श्वेताम्बर तेरापंथ-मत समीक्षा । **
* हुआ, परन्तु भिखुनजीके चेले भारमलने श्रद्धा हटाई नहीं। पश्चात् रुघनाथजीने भिखुनजीसे कहा:
'बगड़ीमें वखताजी ढूंढीये, बच्छराजजी ओसवाल, राजनगरके श्रावक लालनी पोरवाड, इन तीनोंकी तुमने श्रद्धा हटाई है, इस लिये तुम वहाँ जाकरके ठीकाने लाओ। उन लोगोंको तुम ही समझा सकोगे, वहाँसे आप आज्ञा लेकरके बगडी आए । यहाँपर तो आपको 'लेने गई पूत तो खोआई खसम जैसा हुआ । आएथे तो वखते ढूंढकको समझाने । परन्तु प्रत्युत वखता ढूंढीया आपहीको उपालम्भ (ठपका) देने लगा। वखता ढूंढकने कहाः-'देखो ! अपने सबने मिल करके यह ठीक कियाथा, और फिर तुम तो रुघनाथजीके पास जाकरके फंस गए। यह क्या किया? 'बस! ऐसे २ बहुतसेकनच सुना करके फिर चक्कर घुमाया। फिर दो चार महीने बाद भिखुनजी रुघनाथनीके पास आए । फिर भी आहार पाणी साथ नहीं किया । तब रुपनाथजीके भाई जेमलजीके पास भिखुनजी गए । जेमलजीको और रुघनाजीको द्वेष हुआ । छ महीने तक पंचायत होती रही। किन्तु अपना मत नहीं छोड़ा। भिखुननीने अंदर अंदरसे साधुओंको और गृहस्थोंको अपने पक्षमें ले लिये थे । रुघनाथजीने पायाश्चत्त लेकरके समुदायमें रहेनेको बहुत कुछ कहा। परन्तु अब वह कैसे मान सकताथा। क्योंकि उसके पक्षमें और भी लोग मिल गये थे। रुघनाथजीने बहुत कुछ समझाया, परन्तु नहीं समझा, तब 'बिगडा पान बिगाडे चोली, बिगडा साधु बिगाडे टोली ' इस नियमानुसार रुघनाथजीने उसको सं० १८१५ चैत्र शुदि ९ शुक्रवारके दिन समुदायसे बाहर किया। (किसी २ जगह १८१८ लिखा है)
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