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जला सके ) देखी जो कि उसने गोशालके ऊपर छोडी थी और महावीर स्वामीने उस तेजोलेश्या की अभिको अपनी छोडी हुई शीतलेश्यासे शांत कर दिया था ।
यह देखकर गोशालने महावीर स्वामीसे पूछा कि महाराज ! यह तेजोलेश्या कैसे सिद्ध होती है ? महावीर स्वामीने उसको तेजोलेश्या सिद्ध करनेकी विधि बता दी । तदनुसार गोशालने वह लेश्या सिद्ध भी कर ली । तेजोलेश्या सिद्ध हो जानेपर गोशाल महावीर स्वामी से अलग रहने लगा और अपने आपको " जिनेंद्र भगवान " कहने लगा । तथा अपने अनेक शिष्य भी उसने बना लिये ।
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महावीर स्वामीको जब केवलज्ञान हो गया तो वे एक दिन उस श्रावस्ती नगरी में आये जहां गोशाल ठहरा हुवा था । नगरी में गोशालको जनता के मुख से " जिनेन्द्र भगवान सुनकर महावीरस्वामी की सभा के लोगोंने महावीर स्वामीसे पूछा कि भगवन ! यहां दूसरा जिनेद्र भगवान् कौनसा आगया ? महावीर स्वामीने कहा कि मंखली वालेका पुत्र गोशाल मुझसे कुछ विद्या सीखकर व्यर्थ अपने आपको ' जिनेन्द्र ' कहकर यहां ठहरा महावीर स्वामी के मुख से निकली हुई यह बात गोशालने किसी मनुष्यसे सुनली । उसको अपनी निंदा सुनकर महावीर स्वामी के ऊपर बहुत क्रोध आया । उसने भोजनार्थ निकले हुए महावीर स्वामीके शिष्य " आनंद , नि से यों कहा कि आनंद ! महावीर स्वामीने मेरी निन्दा की है सो यह बात ठीक नहीं। तू जाकर अपने स्वामी से कह दे कि यदि दे मेरी निन्दा करेंगे तो मैं उनको जला दूंगा ।
हुआ है ।
आनंद मुनिने यह बात आकर महावीर स्वामी से कही । तदनंतर क्या हुआ उस वृत्तान्तको संस्कृत टीकाकारने कल्पसूत्र के वें पृष्ठ पर यों लिखा है.
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ततो भगवता उक्तं भो आनन्द शीघ्रं त्वं गच्छ गौतमादीन् मुनीन् कथय यत एव गोशाल आगच्छति न केनाप्यस्य भाषणं कर्तव्यं इतस्ततः सर्वेपसरन्तु । भगवतिरस्कारं असहमानौ
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