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वैसे तो श्री मल्लिनाथ तीर्थंकर की प्रतिमा श्वेताम्बरी भाई भी स्त्रीके रूपमें बनाते नहीं हैं । कहीं भी कोई प्रतिमा स्त्रो आकार में देखी नहीं । किन्तु यदि वह सत्यरूप देनेके लिये स्त्री आकार में बनाई भी जावे तो उस प्रतिमाकी वस्त्र आभूषण आदि परिग्रह विना वीतरागदशा रखने से नग्न शरीरमें कुच आदि अंग दीख पडेंगे I यदि उस स्त्रीरूपधारिणी श्री मल्लिनाथकी प्रतिमाको वस्त्र आभूषण आदिसे ढककर रक्खा जायगा तो लक्ष्मी, पार्वती, राधा आदि मूर्तियों के समान वह भी दर्शन करनेवाले मनुष्यों को वीतराग भाव उत्पन्न न कराकर रागभावही उत्पन्न करावेगी |
इस प्रकार श्री मल्लिनाथ तीर्थंकर को स्त्री कहना असत्य है
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अर्हन्त पर उपसर्ग और अभक्ष्यभक्षणका दोष.
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दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदाय द्वारा बतलाये हुए श्री महावीर तीर्थकरके चरितमें बहुत अंतर है । उसमें एक मोटा भारी अंतर यह है कि दिगम्बर संपदाय तो यह कहता है कि केवल ज्ञान उत्पन्न होनेपर केवलीका आत्मा इतना प्रभावशाली हो जाता है कि उनपर कोई भी देव, मनुष्य, तथा पशु किसी प्रकारका उपद्रव नहीं कर सकता । तदनुसार श्री महावीर स्वामी के ऊपर केवली हो जाने पर कोई भी उपसर्ग नहीं हुआ ।
किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय के ग्रंथ केवली पर उपसर्ग न होने रूप प्रभावशाली नियमको स्वीकार करते हुए भी श्री महावीर स्वामी के ऊपर केवलज्ञान हो जानेके पीछे गोशाल नामक मनुष्यसे उपसर्ग हुआ बतलाते हैं । उस उपसर्ग से महावीर स्वामीको ६ मास तक पेचिशके दस्त होते रहे । इस वातको कल्प सूत्रके १८ वें पृष्ट पर इस प्रकार लिखा गया है कि.
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महावीर स्वामीके पास छद्मस्थ साधु दशा में एक मंखली ग्वालेका लडका गोशाल ' शिष्य बनकर रहने लगा | उसने एक वार एक अजैन साधुके पास तेजोलेश्या ( जिसके प्रभावसे किसी जीवको
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