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उसके नहीं होता है | ( स्त्री शब्दका अभिप्राय इस प्रकरण में कर्मभूfast स्त्री से है ।)
स्त्री के वज्रऋषभ नाराच संहनन नहीं होता यह बात निम्नलिखित श्वेताम्बरीय ग्रंथों के प्रमाणों से भी स्वतः सिद्ध हो जाती है । प्रकरणरत्नाकर (चौथा भाग ) के संग्रहणीसूत्र नामक प्रकरणकी २३६ वीं गथामें ऐसा लिखा है
दो पढन पुढविगमणं छेत्र
कीलियाई संघयणे ।
इकिक पुढवि बुड्डी आइतिलेस्साउ नरएसुं ॥ २३६ ॥ यानी - असंप्राप्ता गटिका संहननबाला जीव पहले दूसरे नरक तक जा सकता है आगे नहीं । कीलक संहनन वाला तीसरे नरक तक, अर्द्धनाराचसंहननधारी चौथे नरक तक, नाराच संहनन वाला पांचवें नरक तक, ऋषभनाराच संहनधारी छठे नरक तक और वज्रऋषभनाराच संहननवाला जीव सातवें नरक तक जा सकता है ।
इस गाथासे यह सिद्ध हुआ कि वज्रऋषभनाराच संहनन धारक ही जीव इतना भारी घोर पापकर्म कर सकता है कि वह सातवें नरक में भी चला जावे। जिस जीवके शरीर में वज्रऋषभनाराच संहनन नहीं वह सातवें नरक जाने योग्य तीव्र अशुभ कर्म बंध भी नहीं कर सकता । प्रकरण रत्नाकर ( चौथा भाग ) के संग्रहणी सूत्र में १०० वें पृष्ठ पर उल्लेख है ।
असन्नि सरिसिव पक्खीससीह उरगिच्छि जंति जा छहिं । कमसो उनको सेणं सत्तम पुढवी मणुय मच्छा ! २३४ ॥ यानी - असैनी जीव पहले नरक तक, सांग, गोह, न्योला आदि जीव दूसरे नरक तक, गिद्ध, बाज आदि मांसाहारी पक्षी तीसरे नरक तक, सिंह चीता भेडिया दुष्ट चौपाये पशु चौथे नरक तक, काला सर्प दुष्ट अजगर आदि नाग पांचवें नरकतक, तक और पुरुष तथा मत्स्य ( जलचर जीव ) सातवें नरक तक, सकते हैं।
स्त्री छट्ठे नरक
पहले लिखी हुई गाथा के अनुसार इस गाथासे यह बात स्पष्ट सिद्ध
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