________________
( ३३ )
भी उतना ही कम होता है। कर्मग्रंथों में पुरुषों के ऊंचे संहनन बतलाये हैं। इस कारण कर्मसिद्धांतके अनुसार पुरुषों में अधिक शक्ति होती है और त्रियोंमें कम होती है।
गोम्मटसार कर्मकाण्डमें कर्मभूमिवाली स्त्रियों के शरीरके संहनन इस प्रकार कहे हैं- .
अंतिमतियसंहणणस्सुदओ पुण कम्मभूमिमहिलाणं ।
आदिमतियसंहणणं गस्थित्ति जिणेहि णिदिई ॥ ३४ ॥ अर्थात्-कर्मभूमिवाली स्त्रियों के अंतके तीन संहननों ( अर्द्धनाराच, कीलक, असंप्राप्तामृपाटिका ) का ही उदय होता है । उनके पहले तीन संहनन ( वज्रऋषभनाराच, वज्रनाराच, नाराच ) ही होते हैं।
इस प्रकार सबसे अधिक शक्तिशाली जो वज्रऋषभनाराच संहनन धारी जीव होता है वह वज्रऋषभनाराच संहनन पुरुषके ही होता है; कर्मभूमिज स्त्रीके नहीं होता । " मोक्ष कर्मभूमिमें उत्पन्न होने बालोंको ही मिल सकती है, भोगभूमिवालोंको नहीं ।" यह बात दिगम्बर सम्प्रदायके समान श्वेताम्बर संप्रदाय भी सहर्ष स्वीकार करता है। तदनुसार उन्हें यह बात भी स्वीकार करनी पडेगी कि जिस कर्म. भूमि में उत्मन्न होनेवाले में मुक्ति प्राप्त करनेकी योग्यता है उस कर्मभूमि की स्त्रियोंके शरीर वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले नहीं होते।
मोक्ष वज्रऋषभनाराच संहननवालेको ही प्राप्त हो सकती है ऐसा प्रवचनसारोद्धार के ( चौथा भाग ) संग्रहणीमूत्र नामक प्रकरणकी १६० वीं गाथामें ७५ पृष्टपर स्पष्ट लिखा है
'पढमेण जाव सिद्धीवि ' ॥ १६० ॥
अर्थात्- पहले वज्रऋषभनाराच संहननसे देव, इन्द्र, अहमिंद्र आदि ऊंचे ऊंचे स्थान प्राप्त होते हुए मोक्ष तक प्राप्त हो सकती है ।
इस कारण अपने भाप सिद्ध हो जाता है कि स्त्री मोक्ष नहीं. पाती क्योंकि मोक्ष पद प्राप्त करने का कारण वज्रऋषभनाराच संहनन
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com