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श्रावकों का निवेदन उचित समझ कर तीनों आचार्योने वन छोडकर नगरमें रहना स्वीकार कर लिया । श्रावक लोग उनको नगरमें बहुत उत्सवके साथ ले आये और नगरके अनेक मकानों में ठहरा दिया। ____नगरमें आकर मुनिसंघको, वनमें लौटनेके समय क्षुधापीडित रक्क लोगोंसे जो बाधा होती थी सो तो अवश्य मिट गई। किन्तु दूसरी बाधा यह मा खडी हुई कि जब वे आहार लेने श्रावकोंके घर जाते तभी भूखे दीन दरिद्र लोग भोजन पानेकी आशासे उन मुनियों के साथ हो नाते थे । जब उनको किसी प्रकारसे दूर हटाते थे तो वे दीन करुणाजनक स्वरसे विलाप करते थे जिससे मुनि अन्तराय समझकर विना आहार किये लौट जाते थे।
अंतरायका दूसरा कारण यह भी होता था कि श्रावक लोग दरिद्र होगोंको घरमें घुस आनेके भयसे दिन भर धरका द्वार बंद रखते थे। मुनि जब माहारके लिये उनके घरपर जाते थे, दरवाजा बंद देखकर लौट जाते थे ।इस मापत्तिको दूर करनेकेलिये श्रावक लोगोंने आचार्योके समीप पहुंचकर विनयपूर्वक प्रार्थना की कि महात्मन् यह समय बहुत भारी संकट का है । इस समय मुनिधर्मकी रक्षाके लिये आपको इस प्रकार निराहार रहना ठीक नहीं। दिनमें घर पर आकर भोजन लेना असंभव हो रहा है । इस कारण इस विपत्तिकालमें आप हमारी यह प्रार्थना स्वीकार करें कि रात्रिके समय भोजन पात्रों में ले भाकर दिनमें खा लिया करें। ऐसा किये विना काम नहीं चल सकता।
भाचार्योंने पहले तो यह बात अनुचित समझ कर स्वीकार नहीं की किन्तु अंतमें कुछ और उचित उपाय न देखकर दुष्कालके रहने . तक यह बात भी स्वीकार कर ली। तदनुसार रामस्य आदि आचार्योंकी
आज्ञानुसार प्रत्येक मुनिको आहार पान लानेके लिये काठके पात्र मिल गये। उन पात्रोंको लेकर प्रत्येक मुनि रात्रिके समय श्रावकोंके घर जाता
और वहांसे भोजन लेकर अपने स्थानपर आकर दूसरे दिन खा लिया करता।
रात्रिके समय श्रावकोंके पर भाते जाते समय सडक गलियों के
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