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किंतु मांगनेवालों की संख्या दिनोंदिन कई गुणी अधिक बढ जानेसे फिर काम चलाना उनकी शक्तिसे बाहर हो गया।
अब अन्य नगरोंके समान उजन नगरका भी भयानक, करुणाजनक दृश्य बढने लगा। भूखे लोगोंने पेडोंके पत्ते खाना प्रारम्भ किया। यहांतक कि किसी भी वृक्षपर एक पत्ती न छोडी। तदनन्तर क्योंकी छाल खाना भारम्भ किया, वह भी सब खा डाली । पास आदि जहां जो कुछ दीख पडा क्षुधापीडित लोगोंने खा पी डाला।
उसके पीछे खानेके लिये कुछ भी वस्तु न मिल्नेपर सरकोंपर, मकानोंके सामने भूखे लोग भूखसे रोने पीटने चिल्लाने लगे। माता पिताओंने क्षुधापीडित होकर ऐसी निर्दयता धारण की कि वे अपने अपने छोटे छोटे बच्चोंको छोडकर अपनी क्षुधा मिटानेके लिये इधर उधर भटकने लगे। फिर कुछ न पाकर जमीन पर पडकर प्राण देने लगे । सैकडों मनुष्य तडफ तडफ कर, छटपटाते हुए, विलस विलस कर प्राण देने लगे। उनकी प्यास मिटानेके लिये उनको पानी देने भी कोई नहीं मिलता था।
. ऐसे विकट समयमें श्री रामल्य, स्थूलभद्र तथा स्थूलाचार्यके मुनिसंघकेलिये बहुत भारी कठिनता उत्पन्न होगई । वे उस समय भद्रबाहु स्वामीके वचनका स्मरण करने लगे ।
एक दिन संघके साधु भोजन करके जब वनमें बापिस ना रहे थे उस समय एक साधु पीछे रह गये। क्षुधापीडित निर्दय मनुष्योंने उनको पकड लिया और उनका शरीर चीर डाला। चीर कर उनके शरीरका कलेवर खा गये । ऐसा अनर्थ सुनकर उज्जैनमें हा हा कार मच गया। ऐसे अनर्थोको रोक देनेकेलिये उज्जैन के समस्त श्रावक आचार्योंके निकट जाकर प्रार्थना करने लगे कि महाराज ! यह समय बडा भयानक है। इस समय आपका भोजन करके बनमें जाना बहुत भयाकुल है । इस समय भाप मुनिधर्मकी रक्षाके लिये कृपा करके नगरमें पधारिये । वहां आपको एकान्त स्थानों में ठहरनेसे मुनिचर्या में कोई अड्चन न आवेगी।
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