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कुत्ते मुनियोंकी ओर भोंकते और उन्हें काटने दौडते । खाली हाथों वाले अहिंसा महाव्रतधारी साधुओंको यह भी बहुत बाधा खडी हो गई । यदि कुत्तोंको भगानेके लिये वे कपडोंमें बंधे पात्रोंकी पोटलीसे काम लेते तो भोजन खराब होता था । अन्य भी किसी प्रकार कुत्तोंसे बचनेका उपाय उनके पास नहीं था । इस कारण उनके परिणामोंमें व्याकुलता उत्पन्न होने लगी। ___ इस वाधाको दूर करनेके लिये समस्त श्रावकोंने भाचार्य महाराज से सविनय प्रार्थना की कि महाराज ! नगरमें रहते हुए कुत्तोंकी बाधासे बचनेके लिये एक उपाय केवल यह है कि सब साधु महाराज अपने अपने पास एक एक लाठी अवश्य रखें । उस लाठी के भयसे कुत्ता, चोर, बदमाश भापको बाधा नहीं पहुंचा सकेंगे।
दुष्कालकी बिकराल दशाको देखकर भाचार्योंने भावकोंका यह कहना भी स्वीकार कर लिया। फिर उस दिनसे प्रत्येक साधु अपने पास एक एक लाठी रखने लगा जिससे कि डरकर कुत्तोंने भी साधुओंको आते जाते काटना बंद कर दिया ।
एक बार रात्रिके समय एक क्षीण शरीरवाला मुनि लाठी, पात्र लिए यशोभद्र सेठके घर भोजन लेने गया। तब उसकी गर्भवती बी धनश्री उस मुनिका नग्न काला भयंकर शरीर देखकर डर गई । वह एक दम इतनी डर गई कि उसको गर्भपात हो गया । जिससे उस पर हाहाकार मच गया । साधु भी अन्तराय समझकर अपने स्थानको विना भोजन लिए लौट गये ।
दूसरे दिन आचार्योंके निकट श्रावकोंने आकर यशोभद्र सेठके घर सेठानीके गर्भपातका समाचार सुनाया और विनयपूर्वक निवेदन किया कि गुरुमहाराज! आप स्वयं समझते हैं कि ऐसे भयानक समयमें मुनिधर्मकी रक्षा करना बहुत आवश्यक है । उसकी रक्षाके लिये आपने जैसे हमारी प्रार्थना सुनकर . नगर में रहना, लाठी पात्रोंका रखना आदि स्वीकार कर लिया है उसी प्रकार कृपा करके एक चादर तथा एक कंबल शरीरको ढकने के लिये रखमा
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