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भदेवके जमानेसे होते चले आये हैं तथा कल्पित कथाकारके लेखानुसार जंबूम्वामी तक वस्त्ररहित ( नग्न ) जिनकल्पी साधु होते रहे हैं । फिर शिवभूनिके जिनकल्पी साधु बननेकी बातको नवीन कौन बुद्धिमान पुरुष कह सकता है ? नवीन पंथ वह ही कहलाता है जिसको पहले किसीने न चलाया होवे । ___ आठवें-कल्पित कथाकार विक्रम संवतकी दूसरी शताब्दीमें ( १३८ वें वर्म ) दिगम्बर पंथकी उत्पत्ति बतलाता है; किन्तु समयमार, षट्पाहुड, रयण सार, नियमसार आदि आध्यात्मिक ग्रंथों के रचयिता श्री कुंदकुंदाचार्य प्रथम शताब्दी ( ४९ वें वर्षमें ) हुए हैं जो कि शिलालेखों आदि प्रमाणोंसे प्रमाणित हैं। कुंदकुंदाचार्य नग्न दिगम्बर साधु ही थे यह सारा संसार समझता है। फिर दिगम्बर पंथ दूसरी शताव्दीमें उत्पन्न हुआ कैसे कहा जा सकता है। दूसरी शताब्दी में भी कल्पित कथाकार द्वारा बतलाये १३८ वें वर्षवाले समयके पहले १२५ वें वर्ष में गन्धहस्तिमहाभाष्य, रत्नकरंड श्रावकाचार, स्वयम्भूम्तोत्र आदि अनुपम ग्रंथरत्नोंके निर्माता संसारप्रख्यात आचार्य श्री समन्तभद्र हुए हैं जिनके विषयमें श्वेताम्बर ग्रंथकार श्री हेमचन्द्राचार्य अपने सिद्ध हैमशब्दानुशासन नामक व्याकरण ग्रंथके द्वितीय सूत्रकी व्याख्यामें स्वयम्भूस्तोत्रक ' नयास्तव स्यात्पदसत्यलांछिताः । इत्यादि श्लोक का उल्लेख करते हैं तथा श्री मलयगिरिसूरि अपने आवश्यक सूत्रकी टीका-' आद्यस्तुतिकार ' शब्दसे उल्लेख करते हैं । ये समन्तभद्राचार्य दिगम्बर साधु ही थे। जब वे वि. सं. १२५ में हुए तब दिगम्बर पंथकी उत्पत्ति विक्रम सं. १३८ में बतलाना कितनी भारी मोटी अनभिज्ञता है।
नौवें:-विक्रम संवत् प्रचलित होनेसे पहले जो प्राचीन अजैन ग्रंथकार हुए हैं उन्होंने अपने ग्रंथों में जैन साधुओंका स्वरूप नग्न, दिगम्बर रूपमें ही उल्लेख किया है श्वेताम्बर रूप में उन्हें कहीं नहीं बतलाया । इन प्रमाणोंको हम आगे प्रकट करेंगे। फिर दिगम्बर पंथकी उत्पत्ति विक्रम संवत् की दूसरी शताब्दीमें कैसे कही जा सकती है ?
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