________________
___ अर्थात्:-उत्साह नामक सदस्यने कहा कि भो दिगम्बर यह बात मत कहो क्योंकि पाणिनिने कोटाकोटि, कोटिकोटि, कोटीकोटि ये तीनो शब्द ठीक बतलाये हैं ।
देवमूरि:- आः स्वशास्त्रस्यापि न स्मरसि " अन्तःकोटाकोटिस्थितिके सति कर्मणि " इति । ___ देवसूरिने कुमुदचन्द्रसे कहा कि तु अपने शास्त्रके वाक्यको भी याद नहीं करता; वहां लिखा हुआ है कि " अन्तःकोटाकोटि सागरकी स्थितिवाले कर्मके रहजाने पर " इत्यादि ।
इस प्रकार लिखते हुए देवमूरिकी विजय और कुमुदचन्द्राचार्यकी पराजय ग्रंथकारने प्रगट कर दी है ।
उक्त ग्रंथलेखकका लिखना कितना पक्षपातपूर्ण है इसको एक साधारण मनुष्य भी समझ सकता है ।
चूंकि कुमुदचन्द्राचार्य दिगम्बर साधु थे और लेखक श्वेताम्बर साधुका उपासक था। इस कारण कुमुदचन्द्राचार्य सरीखे दिग्गज विद्वान को साधारण विद्वानसे भी गया बीता लिख दिखाया है। मानो उनको 'कोटाकोटि । शब्दका भी परिज्ञान नहीं था । देवमूरि जो कि प्रमाण नयतत्वालोकालंकार सरीखे साधारण ग्रंथको भी स्वतंत्ररूपसे अपनी प्रतिभाके आधार पर परीक्षामुखकी नकल किये विना नहीं बना सके उन देवसरिको श्वेताम्बर साधु होने के कारण बडा भारी उद्भट विद्वान कर दिया । ग्रंथलेखकने स्वयं ८ वें पृष्ठपर निम्नलिखित शब्दोंमें कुमुदचन्द्राचार्यकी प्रशंसा यों की है ।
" जयतु जयतु कुन्तलकलाविदतुलाभिमानाचलदलनदम्भोलिदण्ड, चौडचतुरपाण्डित्यखण्डनप्रचण्ड, गौडगुणिगर्वसारङ्गशार्दूल, वनविषयविदुषमुखकालुष्यमूल, निषिद्धनेषधबुधदर्यान्धकार, यशःशेषीकृतकान्यकुजविद्वज्जनाहङ्कार, विशदशारदादशकोविदमदच्छेदवैदुष्यात्र, प्राल्भमालवीयकुशलशेमुषीकुशलतालवनदात्र, प्रकृतिवाचाटलाटमुखघटितमौनकपाट, कृतकौङ्कण कविकुलोच्चाट, विक्षिप्तसपादलक्षदक्षपक्ष, जर्जरीकृत
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com