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गुर्जरजनगर्जितकक्ष, तार्किकचक्रचूडामणे, वैयाकरणकमलतरणे, छात्रीकृतच्छन्दश्छेक, साहित्यलतासुधासेक, सरस्वतीहृदयहार, श्वेतांबरविडम्बनप्रहसनसूत्रधार, चतुरशीतिविवादविजयार्जितोर्जितयश:पुज, समर्जितचन्द्र, कुमुदचन्द्रनाम वादीन्द्र !
अर्थात्-भो कुमुदचन्द्र नामक वादीन्द्र ! तुह्मारी जय हो जय हो । तुम कुन्तलदेशीय विद्वानोंके अतुल अभिमानरूपी पर्वतको चूर्ण करनेके लिये वज्र समान हो, चौड देशके चतुर पंडितोंका पांडित्य खंडित करनेके लिये प्रचंड हो, गौडदेशवासी विद्यावानोंके गर्वरूपी हरिणको नष्ट करनेके लिये सिंह समान हो, बंगालके विद्वानोंके मुखपर कालिभा पोतनेवाले हो, निषध देशके विद्वानोंके गर्वरूपी अन्धकारको दूर करने वाले हो, कान्यकुब्ज के उद्भट विद्वानोंका अलंकार तुमने नि:शेष कर दिया है, शारदा देशके विद्वानोंका विद्यामद छेद डाला है, मालवा देशवासी प्रतिभाशाली पंडितोंकी कुशल बुद्धिकी चतुरता छेदनेके लिये तुम दांते ( हांसिया ) समान हो, लाट देशनिवासी वाचाल ( बहुतबोलनेवाले ) विद्वानों के मुखको बंद करने वाले हो, तुमने कोंकण देशके कविवरोंको भगादिया है, सपादलक्ष देशके चतुर पंडितोंको विक्षिप्त वना दिया है, न्यायवेत्ता विद्वानोंमें सर्व श्रेष्ठ हो, वैयाकरण विद्वानों में सूर्यतुल्य हो, छन्दशास्त्रके विद्वानोंको आपने अपना शिष्य बना लिया है, साहित्यरूपी लता के सींचनेवाले हो, सरस्वतीके हृदय. हार समान हो, श्वेताम्बरीय विद्वानोंका तिरस्कार करनेके सूत्रधार हो
और आपने चौरासी ८४ शास्त्रार्थों में विजय प्राप्त करके बहुत भारी यश उपार्जित किया है। ___ अब पाठक महानुभाव स्वयं विचार करें कि जिन श्रीकुमुदचन्द्राचार्यने कुन्तल, चौड, गौड, बंगाल, निषध. कान्यकुब्ज, मालवा, लाट, सपादलक्ष, गुजरात, आदि प्रायः सभी भारतवर्षके देशोंमें पहुंचकर वहांके प्रसिद्ध नगरोंके विद्वानोंके साथ शास्त्रार्थ करके विजय प्राप्त की थी। कहीं भी पराजित नहीं हुए थे । तर्क, छन्द व्याकरण, साहित्य दर्शन थादि सभी विषयोंके असाधारण विद्वान थे, दो चार नहीं
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