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अंतमें देवलीला समझकर भकलंकदेवने उस तारादेवीको भी एक दिनमें ही हरा दिया । ___ यह शास्त्रार्थ अनेक ऐतिहासिक प्रमाणोंसे सत्य प्रमाणित है । इस शास्त्रार्थमें विजय प्राप्त करके श्री अकलंकदेवने बौद्ध विद्वानोंके साथ अनेक स्थानोंपर अनेक शास्त्रार्थ किये और उनमें असाधारण विजय प्राप्त करके भारतभरमें जैनधर्मका डंका बजाया तथा बौद्धधर्मका उग्र तेज बहुत फीका कर दिया।
श्रवणबेलगोलके शिलालेखों में श्री मकलंकदेव स्वामीके निम्मलिखित श्लोक पाये जाते हैं --
राजन साहसतुङ्ग सन्ति बहवः श्वेतातपत्रा नृपाः किन्तु त्वत्सदृशा रणे विजयिनस्त्यागोन्नता दुर्लभाः । तद्वत्सन्ति बुधा न सन्ति कवयो वागीश्वरा वाग्मिनो नानाशास्त्रविचारचातुरधियः काले कलौ मद्विधाः ।
अर्थात्-हे साहसतुझ राजन् ! यधपि सफेद छत्रधारक भूपति बहुतसे हैं किन्तु तुझ सरीखा युद्ध में विजय प्राप्त करनेवाला राजा कोई भी नहीं है । इसी प्रकार यद्यपि इस समय भनेक विद्वान पाये जाते हैं किन्तु इस कलिकालमें मुझ सरीखा कवि, वागीश्वर, वाग्मी तथा अनेक प्रकारके शास्त्रविचारोंमें चातुर्य रखनेवासा विद्वान् भी कोई नहीं है।
राजन् सारिदर्पप्रविदलनपटुस्त्वं यथात्र प्रसिद्धस्तद्वत्ल्यातोहमस्यां भुवि निखिलमदोत्पाटने पंडितानाम् । नो चेदेषोहमेते तव सदसि सदा संति सन्तो महान्तो वक्तुं यस्यास्ति शक्तिः स बदतु विदिताशेषशास्त्रो यदि स्यात् ।
अर्शत्-भो राजन् ! जिस प्रकार तुम समस्त शत्रुओंका मानभङ्ग करनेमें कुशल प्रसिद्ध हो उसी प्रकार मैं इस भूमंडलपर विद्वानोंका विद्यामद दूर करने के लिये प्रसिद्ध हूं। यदि इस बातको तुम असत्य समझते हो तो तुम्हारी सभामें बहुतसे उद्भट विद्वान् विद्यमान हैं उनमें से यदि किसी में शक्ति है तो समस्तशासवेसा विद्वान् मेरे सामने शास्त्रार्थ करने भाजावे ।
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