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___इन उपयुक्त श्लोकोंसे श्री अकलंकदेवका जो असाधारण प्रखर पाण्डित्य प्रगट होता है उसके जुदे बतलानेकी आवश्यकता नहीं । यद्यपि इन अकलंकदेवकी विद्वत्ता समस्त विषयों में विद्यमान थी किन्तु समयके अनुसार तर्कविषय उनका उनमेंसे असाधारण था । इसी कारण अनेक शास्त्रार्थों में वे यशस्वी हुए । एवं उन्होंने जो ग्रंथ बनाये हैं उनमेंसे अधिकांश ग्रंथ न्यायविषयक हैं। ____ राजवार्तिक, अकलंक प्रायश्चित्तके सिवाय अष्टशती, न्यायविनिश्चय, लघीयस्त्रयी, वृहत्रयी, न्यायचूलिका आदि सब ग्रंथ न्याय विषयके श्री अकलंकदेवने लिखे हैं, श्री अकलंकदेव कैसे विद्वान् थे उसकी साक्षी ये ग्रंथरत्न दे रहे हैं।
ये स्वामी अकलंकदेव विक्रम संवत्की आठवीं शताब्दीमें हुए हैं ऐसा श्रीमान् सतीशचन्द्र विद्याभूषण आदि विद्वानोंने निश्चय किया है। ___अकलंकदेवके पीछे श्री विद्यानंद स्वामी भी एक बडे प्रभावशाली असाधारण तार्किक विद्वान् हुए हैं। ये पहले वेदानुयायी थे। किंतु स्वामी समन्तभद्राचार्यके बनाये हुए श्री देवागम स्तोत्रको मार्गमें चलते हुए मुनकर जैन धर्मकी सत्यता जांचकर दिगम्बर जैन साधु हो गये थे। पीछे इन्होंने जो अनेक ग्रंथ रचे हैं वे सभी न्यायविषयके ग्रंथ हैं। उन ग्रंथों के अवलोकन करनेसे विद्वान उनकी अनुपम विद्वताका पता चला सकते हैं।
इन्होंने अष्ट सहस्री, श्लोकवार्तिक, विद्यानंदमहोदय, आप्तपरीक्ष प्रमाणनिर्णय, युक्त्यनुशासनटीका, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, प्रमाणमीमांसा आदि अनेक उच्चको टके ग्रंथ निर्माण किये हैं। इनका समय विक्रम सं. ८३२ से ८९५ तक निश्चित होता है । यहां तक भी कोई श्वेतांबरीय ग्रंथ न्याय विषयका नहीं बन पाया था।
इनके पीछे श्री माणिक्यनंदि आचार्य हुए हैं। इन्होंने न्यायविषयकी सूत्ररूपमें रचना करके परीक्षामुख नामक ग्रंथ बनाया है। ये अकलंक देवके पीछे हुए हैं किन्तु कहीं कहींपर इनका समय विक्रम सं. ५६९ उल्लिखित है।
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