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लिये, दो प्रकारसे, घायल अंगूठे पर बांधनेके लिये, बिछाने तथा पहनने मोढनेके लिये भी चमडेका उपयोग कर सकता है ऐसा ग्रंथकारका अभिमत है। ___ जब कि चमडे सरीखी अशुद्ध, असंयमकारक, निषिद्ध वस्तु जनसाधारणमें भी अपवित्र, हेय समझी जाती है [ गृहस्थाश्रमकी झंझटमें लाचारीसे भले ही उसका पूर्ण त्याग न किया जा सके ] फिर ऐसे निन्द्य हिंसाजनक पदार्थका उपयोग, परिवारण अहिंसा, परिग्रहत्याग महाव्रतधारी साधुके लिये बतलाना कहां तक उचित, सिद्धान्त अनुसार, धर्मका साधक है इसका विचार स्वयं करें । हम तो केवल इतना लिखते हैं कि यह ग्रंथ भी सच्चा आगम ग्रंथ कदापि नहीं हो सकता क्योंकि यदि ऐसा ग्रंथ भी प्रामाणिक ग्रंथ हो सकता है तो हिंसा विधान करनेवाले अजैन ग्रंथ भी अप्रामाणिक, झुठे आगम नहीं हो सकते ।
४-इसी प्रकार भगवतीमत्र ग्रंथ भी श्वेतांबर समाजका एक अच्छा प्रामाणिक आगम ग्रंथ माना जाता है। इसमें ऐसे वैसे साधारणके विषयमें नहीं किंतु भगवान महावीर स्वामीके विषयमें अर्हन्त दशाके समय रोग उपशम करनेके लिये १२७० तथा १२७१११२७३ वें पृष्ठपर कबूतरका मांस खाना लिखा है जिसके कि खाते ही भगवानका रोग समूल नष्ट हो गया बताया गया है ।
विचारचतुर पाठक महाशय स्वयं निष्पक्ष हृदयसे विचार करें कि यह ग्रंथ भी प्रामाणिक आगम ग्रंथ हो सकता है या नहीं ?
पाठक महानुभावोंके समक्ष श्वेतांबरीय चार प्रन्यात प्रथोंका संक्षिप्त प्रदर्शन किया है। अन्य ग्रंथोंके विषयमें भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है । उन ग्रंथों में भी अनेक विषय सिद्धांतविरुद्ध, प्रकृतिविरुद्ध विद्यमान हैं । इस कारण कहना पडता है कि श्वेतांबरीय ग्रंथ आगम कोटिम सम्मिलित नहीं हो सकते हैं।
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