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दूसरे - जिन भगवान महावीर स्वामीको श्वेताम्री पूज्य समझते हैं उन महावीर भगवानका इस कथन से अपमान कितना होता है इस बातका विचार भी शायद श्वेतांबरी भाइयोंने नहीं किया है । पूज्य तीर्थंकर देवका पवित्र शरीर दो प्रकारके (ब्राह्मणी व क्षत्रियाणी के) रजोंसे बने - वास्तविक पिता ब्राह्मण हो और प्रसिद्धि क्षत्रिय पिताके नामसे हो । इत्यादि ।
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तीसरे - ब्राम्हणको नीचगोत्री लिखना, इंद्र द्वारा भगवान महावीर स्वामीका नीच गोत्र बदल देना । इत्यादि बातें भी ऐसी हैं जिनमें असत्य कल्पनाके सिवाय जैनसिद्धांत, कर्मसिद्धांत रंचमात्र भी साथ नहीं देता । आगे १०३ के पृष्ठपर लिखा है कि " महावीर स्वामीके ११ गणधरोंमें से मंडिक तथा मौर्यपुत्र नामक दो गणधरोंकी माता एक थी किंतु पिता क्रमसे धनदेव और मौर्य ये दो थे । गणधरोंकी माताने एक पतिके मर जाने पर अपना दूसरा पति बनाया था । "
यह बात भी बहुत भारी अनुचित लिखी है । गणधर सरीखे पूज्य पुरुषको दो पिताओं तथा एक मातासे उत्पन्न हुआ कहना इस सरीखा पाप तथा निंदाका कार्य और क्या हो सकता है । कल्पसूत्र के इस कथन के अनुसार स्त्रियोंको अनेक पुरुषोंको पति बनाकर सन्तान उत्पन्न करने में कुछ हीनता नहीं । वे इस निन्द्य सदाचारविरुद्ध संयोग से भी गणधर हो सकने योग्य उन्नत आत्मा पुत्र उत्पन्न कर सकती हैं । इसके पीछे १११ वें पृष्ठपर लिखा हुआ हैं कि
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साधु शरीरके उपयोगकेलिये मांस, मधु और मक्खनको अपवाद - दशा में (किसी विशेष हालत में ) चौमासेके सिवाय ग्रहण कर सकता है।" कल्पसूत्र सरीखे श्वेताम्बरसमाज के परमपूज्य ग्रंथकी यह वात कितfit fore और धर्मविरुद्ध है इस को विशेष स्पष्ट करनेकी आवश्यकता नहीं । अहिंसा महात्रतधारी साधु जब अपने शरीर के उपयोग के लिये मांस तक ले सकता है फिर संसारका अन्य कौनसा निन्द्य पदार्थ शेष रह
गया ?
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