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अपने इन सत्रोंसे स्पष्ट तौरसे मांस
इस प्रकार आचारांग भक्षणका विधान करता है ।
ऐसे मांसभक्षण विधायक ग्रंथको आगम कहा जाय या आगमाभास ? इस बातका निर्णय स्वयं श्वेताम्बरी माई अपने निष्पक्ष हृदयसे कर लेवें । हमने ऊपर सूत्रोंका केवल अभिप्राय इस कारण दिया है कि पिछले प्रकरण में उनका मूल उल्लेख आ चुका I
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सूत्र
२ -- अब कल्पसूत्रका भी थोडा परिचय लीजिये | यह श्वेताम्बर समाजमें परम आदरणीय ग्रंथ है । पर्युषण पर्वमें यह सर्वत्र पढा जाता है । स्वयं कल्पसूत्रमें अपनी ( कल्पसूत्रकी ) महिमा ५ वें पृष्टपर इस प्रकार लिखी है कि
" श्री कल्पसूत्र श्री बींजु कोई शास्त्र नथी । मुखमां सहस्र जिव्हा होय भने जो हृदयमां केवलज्ञान होय तो पण मनुष्योथी आ कल्पसूत्रनुं महात्म्य कही शकाय तेम नथी "
अर्थात् - कल्पसूत्र के सिवाय अन्य कोई शास्त्र नहीं है..... मनुष्य के मुखमें यदि हजार जीमें हों और हृदयमें केवलज्ञान विद्यमान हो तथापि इस कल्पसूत्र की महिमा नहीं कही जा सकती है ।
कल्पसूत्र के रचयिताने जो इतनी भारी महिमा अपने कल्पसूत्रकी लिखकर केवलज्ञानी भगवानका सम्मान किया है वह भी देखने योग्य हैं । सारांश यह है कि श्वेताम्बरी भाई कल्पसूत्रको अन्य ग्रंथोंसे अधिक पूज्य समझते हैं । इस कल्पसूत्र में भी अनेक सिद्धान्तविरुद्ध, प्राकृतिक नियमविरुद्ध, धर्मविरुद्ध बातोंका समावेश है ।
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प्रथम ही २४-२५ वें पृष्ठपर भगवान महावीर स्वामी के गर्भहरणकी बात लिखी है । यह बात प्रकृतिविरुद्ध व असंभव है, कर्म सिद्धान्त प्रतिकूल है । संसारका कोई भी सिद्धान्त न यह मान सकता है और न प्रमाणित कर सकता है कि ८२ दिनका गर्म एक स्त्रीके पेटमें से निकालकर दूसरी स्त्रीके उदरमें रक्खा जा सके और फिर बालकका जीवन बना रहे ।
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