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क्या साधु छाता भी रक्ख ? यद्यपि साधुको बरसात तथा धूप आदिसे बचने के लिये छाता (छत्र- छतरी ) रखनेका विधान कहीं सुना नहीं गया है और न किसी महाव्रतधारी श्वेतांबर स्थानकवासी साधुको अपने साथ छाता रखते कभी देखा ही है । किन्तु फिर भी आचारांग सूत्रके १५ वे अध्यायके पहले उद्देशमें यों लिखा है
" से अणुपवि सित्तागाम बा जाव रायहाणि वा णेव सयं अदिन्नं गिण्हेज्जा, णेव गणेण्ण अदिण्णं गिण्हावेज्जा, णेव ण्णेणं अदिण्णं गिण्डंत समणुजाणेज्जा । जेहिवि सद्धिं संपञ्चइए, तेसिपियाई मिक्खू, छत्तयं वा मत्तय वा दंडगं वा जाव चम्मच्छेदणगं वा, तेसिं पुवामेव उम्गहं मण्णुण्णविय अपडिलेहिय अपमजिय णो गिण्हेज्ज वा पगिण्हेज्ज मा, तेसिं पुवामेव उग्गहं अण्णुण्णविय पडिलेहिय पमज्जिय गिण्हेज्ज वा पगिण्हेज्ज वा । " ८६९ पृष्ठ ३१७-३१८ ।
अर्थात् - मुनि गांव या नगरमें जाते समय अपने साथ न तो कोई दुसरी वस्तु लेवे, न किसीसे लेने के लिये कहे तथा यदि कोई लेता हो तो उसको अच्छा न समझे । और तो क्या, किन्तु जिनके साथ दीक्षा ली हो उनमें से छाता, मात्रक (?) लाठी, और चर्मछेदनक उनके पूछे बिना तथा शोधे बिना नहीं ले । पूछकर तथा शोधकर उनको ग्रहण करे।
'छत्रक ' शब्दके लिये इसी ३१८ वे पृष्ठकी टिप्पणी में यों
“ वर्षाकल्प नामनु कपडं अथवा कोंकण विगेरे देशोमां बहु बरसाद होवाथी कदाच मुनिने ते कारणे छत्र पण राबवू पडे (टीका)"
यानी- छत्रक माने वर्षाकल्प नामक कपडा अथवा कोंकण भादि देशोंमें बहुत बरसात होती है इस कारण उसके लिये कदाचित छाता भी रखना पडे।
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