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साध्वी व्याख्यान निर्णयः .
में चले जाते हैं अथवा कोई केवलज्ञान पाकर निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं । इसलिए साधुओं की तरह साध्वियों के केवलज्ञान महोत्सव होने का या देशना देने का निषेध किसी प्रकार नहीं हो सकता। जिस साध्वी के छद्मस्थ अवस्था में अथवा केवली अवस्था में जितने २ देशना देने के लिए परोपकारी भाषावर्गणा के पुद्गलों का जितना २ बंध पडा होगा उनको भोगने के लिए (क्षय करने के लिए ) देशना देकर परोपकार अवश्य कर सकती हैं । यह कर्म
के अनुसार अनादि सिद्ध नियम है, इसको कोई भी अन्यथा नहीं कर सकता। ६६-फिर भी देखिये-गृहस्थ लोग हर समय, छः काय के जीवों की विराधना करते हुए १७, १८, पापस्थानों का सेवन करके कुटुम्ब, शरीर आदि की मोह माया से, क्रोधादि कषायों से अनेक प्रकार के कर्म बंधन करते रहते हैं। ऐसी दशा में साध्वीगण ग्राम नगर आदि में विहार करती हुई श्रावक-श्राविकाओं के समुदाय में जब तक व्याख्यान बांचती रहेगी, तब तक भव्य जीवों के पूर्वोक्त कर्म बंधनों के कारणों से छुटकारा रहेगा, और भगवान् की वाणी सुनकर वे लोग परमानन्द प्राप्त करेंगे, शुभ ध्यान से अनेक भवों के अशुभ कर्मों का नाश होगा तथा साध्वीगण की देशना से सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, दान; शील, तप, भाव, आदि शुभ कार्यों से अनेक प्रकार का लाभ प्राप्त होगा और कई भव्य जीव वैराग्य प्राप्तकर गृहस्थाश्रम छोडकर संयम लेकर अपना आत्म कल्याण करेंगे, इसीलिये सिद्ध प्राभत आदि में साध्वी के उपदेश मे परुषों का सिद्ध होना लिखा है। इस प्रकार साध्वीगण के व्याख्यान से अनन्त लाभ हुए हैं, होते हैं, और आगे भी होते रहेंगे, ऐसे सब जीवों के अभयदान के हेतु आदि अनेक लाभों का विचार किये विना अनी तुच्छ बुद्धि अज्ञानतावश साध्वीगण का व्याख्यान निषेध करके उपरोक्त पाप प्रवृति का कारण और धर्म कार्यों की अन्तराय करते हैं यह सर्वथा अनुचित है।
६७-कई महाशय कहते हैं कि भगवान महावीर स्वामी के सामने दीक्षा दी हुई, ३६००० साध्वियां थी, उनमें १४०० साध्वियों को तो केवलशाम होगया था। ओर अन्य साध्वियां भी ११ अंग आदि आगम पढी हुई थी' परन्तु उनमें से किसी ने भी श्रावक श्राविकाओं के सामने देशना दी हो व्याख्यान बांचकर किसी को प्रतिबोध दिया हो, ऐसा किसी भी शास्त्र में लिखा हुवा देखने में नहीं आता, तो फिर अभी की साध्विये व्याख्यान कैसे बांच सकती हैं। यह कथन भी अनसमझवालों का ही है, क्योंकि देखिये-भगवान के सामने ३६००० साध्विये मौजूद थी, और लाखों श्रावक व्रतधारी मौजूद थे परन्तु किसी साध्वी को किसी भी श्रावक ने दान दिया हो या वस्त्र पात्र कम्बलादि वहोराये हों ऐसा किसी भी शास्त्र में व्यक्तिगत नाम लेकर लिखा हुवा देखने में नहीं आने पर अगर कोई कुतर्क करेगा कि-किसी श्रावक ने किसी साध्वी को दान नहीं दिया, ऐसा कहनेवाले को अज्ञानी समझा जाता है, क्योंकि साध्वियों को आहार आदि देना, वस्त्र पात्र कम्बलादि वहोराना श्रावकों का खास कर्तव्य है। अगर भगवान के सामने किसी साध्वी को किसी धावक ने आहारादि
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