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साध्वी व्याख्यान निर्णयः
संदेह भविकना टाले, कुमतादिकना मदगाले। एक अवसर अवधे भाले, महाबल निर्वाण निहाले । होराज ॥ ३ ॥ निज नंदन प्रतिबोधवा, भवताप दुरंत हरेवा। आवी तिण पुरी ततखेवा, होवे साधु ने धर्मनी देवा ।। होराज ॥४॥ साधुयोग्य वसतीने ठामें, पशु पंडग रहित सुधामें। साध्वी ने ठाण अभिरामे, बिटी रही आई सुकामे ॥ होराज ॥५॥ शतबल भूपत अति भक्ते, वांदे श्रावकनी युक्त। समजावा साध्वी युगते, जिण धी पामे वली मुक्ते। होराज ॥६॥ राजेन्द्र पिता तुज शूरो, उपशम संवेगे पूरो । सत्य साहस शौच सनूरो, पाम्यो शिवसुख मह भूरो॥होराज ॥७॥ उपसर्यो कनकवतीये, न करयुं मन कलुष व्रतीये। भवसागर तरतां तीये, अवलंबन दीबूं मीये ॥होराज ॥८॥ धन पुत्र कलत्र गृहभार, जस कारण तजिये संसार। तप लोच क्रिया व्यवहार, साधीजे विविध प्रकार ॥ होराज ॥९॥ सेवे जे गिरि वन घांटा, सहिये वचन कटुकना कांटा। उपसर्ग उरगनी आंटा, खमीये तई धीरजना सांटा ।। होराज ॥१०॥ दुर्लभ ते पद तातें लांधू, नीगमीयूं भव भय बांधू । हवे का मन शोके वांबूं, करे काई वयुष ए आंधू । होराज ।। ११ ।। कृतकृत्य हुओ मुनिराय, तिणे हर्ष तणा ए उपाय । ते माटे अहो महाराय, काई शोक करे एणे ठाय ॥होराज ।। १२ ॥ पोतानो वाल्हो कोई, निधिपामे सहसा सोई। तिहा शोक के हर्षज होई, कहे हियडे विचारी जोई ॥होराज ॥१३॥' विश्वानर पीडा तातें, सांसही होशे एह यांतें । चिंता म करे तिलमाते, जय अरथि खिति सहे गाते । होराज ॥१४॥ साधकनर विद्यासाधे, पहेलु तिहा बुधव, सहे बोधो। निज कारज सिद्धिं आराधे, नव आयनः फलमुखलाधो ॥१५॥
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