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बीकानेर में उपधान तप और आचार्य पद (श्रीमान् सुखसागरजी महाराज के सिंघाड़े में दूसरे आचार्य )
खरतर गच्छीय महामहोपाध्याय श्री सुमतिसागरजी महाराज के शिष्यरत्न पूज्यवर उपाध्याय श्री मणिसागरजी महाराज शिष्य विनयसागरजी सह विराजने से यहां बहुत सी धार्मिक जागृतिएं हुई। उपधान तप उन सब में प्रधान है। कार्तिक कृष्ण ६ को उपधान तप प्रारंभ हुआ, और इसमें : श्रावक ८५ श्राविकाओं ने तप वहन कर महान् लाभ उठाया । इसका सारा आयोजन सेठ संपतलालजी दफ्तरी की तरफ से हुआ था। तप की निर्विघ्न समाप्ति के उपलक्ष्य में मालारोपण का महोत्सव पौष कृष्ण प्रतिपदा १ का निश्चित होने पर चूरू में चातुर्मास कर नागौर पधारे हुवे परमपूज्य जैनाचार्य श्री जिनरिद्धिसूरिजी म० को विशेष आग्रह के साथ यहां पधारने की विनती की गई । संघ के आग्रह से प्राचार्य म० भी शीघ्रता से विहार कर मार्गशीर्ष शुक्ल पूर्णिमा १५ को बीकानेर पधारे । सूरि जी के स्वागतार्थ बीकानेर का विशाल संघ बड़ी संख्या में सामने गया, उसी दिन दोपहर में माला का वरघोड़ा निकला। मिति पौष कृष्ण प्रतिपदा १ को लगभग दो ढाई हजार जनता की उपस्थिति में माला रोपण महोत्सव सेठ दानमलजी नाहटा की कोटडी-नाहटों की गवाड़ में संपन्न हुआ, इस सुअवसर पर उपाध्याय श्री मणिसागरजी म. को श्री संघ की ओर से महोपाध्याय पद देने का विचार हो रहा था पर प्राचार्य श्री जिन रिद्धिसूरिजी म. ने आपकी योग्यता एवं विशिष्ट सेवाओं को ध्यान में लाकर संघ से श्राचार्य पद देने का प्रस्ताव रक्खा, इस पर श्रीमान् सेठ भैरूदानजी कोठारी ने संघ की सम्मति द्वारा सूरिजी के प्रस्तावित श्रादेश का समर्थन किया, व गम्भीर जयध्वनि के साथ उन्हें प्राचार्य पद से सुशोभित किया गया। इसके पश्चात् संघपतिजी की सेवाओं का श्री ताजमलजी बोथरा ने दिग्दर्शन कराया और श्री भैरूंदानजी कोठारी के कर कमलों से उपधान संघवी श्री सम्पतलालजी दफ्तरी को चांदी के कास्केट में सन्मान पत्र दिया गया। श्री चंपालालजी बक्सी ने दो मास तक अपने सारे व्यापार एवं गृहकार्य को छोड़ कर दिन रात बड़े परिश्रम से उपधान की व्यवस्था संपन्न की इसके लिये उन्हें भी स्वर्ण रौप्य पदक देने की घोषणा की गई तत्पश्चात् तपस्वियों को माला पहनाई जाकर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा रावतमलजी बोथरा के चांदी के प्याले, अाठ व्यक्तियों के नगद रुपये, पुस्तकें, नारियल, खोपरे
आदि की करीब ७१ प्रभावनाएं हुई । उपधान तप के उपलक्ष में मिति कार्तिक शुक्ला ६ को स्थानीय श्री चिन्तामणिजी के मंदिर के भण्डारस्थ १११० प्राचीन प्रतिमाएं एवं श्री महावीरजी के भण्डारस्थ ७५ प्रतिमाएं को बाहर निकाल कर श्री संपतलालजी दफ्तरी ने उसके दर्शन एवं पूजन का महान लाभ उठाया। उनकी ओर से ६ अट्ठाई महोत्सव और अन्य ६-७ अट्ठाई महोत्सव हुवे। गिति कार्तिक शुक्ला १५ को श्री चिन्तामणिजी के मंदिर से बड़े धूमधाम के साथ भगवान की सवारी निकाली जाकर गौडी पार्श्वनाथजी के मंदिर होकर वापिस पधारी। मिती मार्गशीर्ष कृष्णा ६ को शांति स्नात्र एवं विसर्जन क्रिया विधि के साथ श्री चिंतामणिजी की भण्डारस्थ मूर्तियां पुनः भंडार में विराजमान की गई। श्री महावीर स्वामी के मंदिर की प्रतिमाएं पौष कृष्णा प्रतिपदा १ को भण्डारस्थ की गई । मालारोपण उत्सव में अनेकों श्रावक श्राविकाओं ने महीने, १५ दिन ब्रह्मचर्य आदि के प्रत्याख्यान किये एवंश्री रावतमलजी व पूनमचंदजी बोथरा ने जोड़े से चतुर्थ व्रत एवं जतनमलजी नाहटा (आयु २३ वर्ष) ने आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत स्वीकार किया । कई श्रावक १२ व्रतादि लेने का विचार कर रहे हैं।
जैन ध्वज वर्ष ८ अंक ३१ तारीख २३-१२-४४ के अंक से उद्धत । भंवरलाल नाहटा
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