________________
सावी व्याख्यान निर्णयः
३-जैन शासन में अनादि काल से जिनमूर्ति को शाक्षात ही जिनेश्वर भगवान के तुल्य मान कर वंदन पूजन करने का अखंड प्रवाह चला आता है, वर्तमान समय में जैन श्वेताम्बर समाज के सभी गच्छों में तथा दिगम्बर समाज में भी यही मान्यता चली आ रही है। तिसपर मी अभी कुछ काल से स्थानकवासी साधुओं ने जिनमूर्ति का वंदन पूजन करने का निषेध करके प्रपंच फैला दिया है तथा स्थानकवासी साध्वियां गांव गांव फिर कर श्रावक-श्राविकाओं की समुदाय में व्याख्यान बांचकर अनेक प्रकार की कुयुक्तियों द्वारा भोले जीवों को भ्रान्ति में डालकर हजारो मनुष्यों को मुंह बांधने वाले अपने भक्त बनालिये हैं तथा भगवान की भक्ति के विरोध में खडे कर दिये हैं। जिससे जैन श्वेताम्बर समाज को बड़ी हानी पहुंची है, ऐसी अवस्था में अपना साध्वी समुदाय शासन हित की बुद्धि से गांव गांव में विहार करके वहां के लोगों को धर्मोपदेश द्वारा उनके मिथ्यात्व का निवारण करके सन्मार्ग में लाती रहें और, भगवान की पूजा भक्ति के अनुरागी बनाती रहें इस प्रकार मारवाड़, मालवा आदि प्रदेशों में पढ़ी लिखी विदुषी साध्वियों के व्याख्यान से बड़े बड़े लाभ हुए है। वैसे लाभ सामान्य साधुओं के व्याख्यान से होने कठिन है।
ऐसे प्रत्यक्ष लाभ के कारण का विचार किये बिना अपने हठाग्रह की बात पकड़ कर स्त्री-पुरुषों के समुदाय में साध्वी को व्याख्यान बांचने का निषेध करने वाले महाशय जैन समुदाय को बड़ी हानि पहुँचाने का कार्य करते हैं और अनेक भव्यजीवों के धर्म कार्य में अन्तराय डालते हैं।
अब हम यहां पर शास्त्रों के प्रमाण बतलाते हैं।
४-भावनगर आत्मानन्द जैन सभा की । (फ से नियुक्ति लघु भाष्यवृत्ति सहित छपा हुआ-"बृहत् कल्पसूत्र" के चतुर्थ भाग में पृष्ठ १२३३ में ऐसा पाठ है
नो कप्पति निग्गंथाण वा निग्गंधीण वा अंतरगिहंसि जाव चउगाहं वा पंचगाहं वा आइक्खित्तए वा विभावित्तए वा किहित्तए वा पवेइत्तए वा नऽन्नत्थ एगणाएण वा एग वागरणेण वा एग गाहाए वा एग सिलोएण वा सेविय ठिच्चा नो चेवणं आठिचा ।। २० ॥
अस्य सम्बन्धमाहअइप्पसत्तो खलु एस अत्थो, जं रोगिमादीक णता अणुण्णा ॥ अण्णो वि मा भिक्खगतो करिजा, गाहोवदेसादि अतोतु मुत्तं ॥ ४५६६ ॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com