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________________ कपाटाधिकारः। ५०३ जान सकते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र की गाथा जो जीतमलजीने लिखी है उसका अभिप्राय वह गाथा लिख कर बताया जाता है। वह गाथा यह है:-- मनोहरं चित्तहरं मल्लधूवेण वासियं सकवार्ड पांडुरुल्लो मनसावि न पत्थए" इसके आगेकी गाथा यह है "इन्दियाणिउ भिक्खुस्स तारिसंमिउवस्सए दुक्कराई निवारेउ कामरागविवडढणे" (उत्तराध्ययन अध्ययन ४ गाथा ३५ । ३६ ) : अर्थ: मनोहर, चित्रोंसे युक्त, माल्य शौर धूपसे वासित, कपाटयुक्त, और श्वेत धनको चादर से ढके हुए, मकानकी साधु मनसे भी चाहमा नहीं करे । क्योंकि ऐसे मकान में रहने पर साधुकी इंद्रियां जब चञ्चल होकर अपने अपने विषयों में प्रवृत्त होती हैं तब उनका निरोध करना कठिन हो जाता है क्योंकि पूर्वोक्त प्रकारका मकान काम रागको बढ़ाने वाला होता है। इन गाथाओंमें, साधुको अपनी इन्द्रियोंका निग्रह कानेके लिये मनोहर, चित्र युक्त, सुवासित सकपाट, और श्वेत चांदनी वाले मकानमें रहना वर्जित किया है कपाट खोलने और वन्द करनेके भयसे गहना वर्जित नहीं किया है। अगली गाथामें साफ साफ लिखा है कि "मनोहर, चित्रयुक्त, माल्य और धूपसे सुवासित मकानमें रहना, काम राग को बढ़ाने वाला होता है इसलिये साधुको उक्त मकानमें नहीं रहना चाहिये" यदि कपाट खोलनेमें दोष होता तो जैसे शास्त्रकारने यह कहा है कि "ऐसे मकानमें रहने पर काम रागको वृद्धि होती है" उसी तरह यह भी कह देते कि 'ऐसे मकानमें रहने पर कपाट खोलना और बन्द करना पड़ता है इसलिये साधुको उक्त मकान में नहीं रहना चाहिये" परन्तु शास्त्रकारने यह नहीं कह कर काम बृद्धिके भयसे उक्त मकानमें रहना वर्जित किया है इसलिये उक्त गाथाका नाम लेकर कपाट खोलने और बन्द करने का निषेध करना अज्ञानमूलक समझना चाहिये । आजकल व्यवहारमें भी यही देखा जाता है कि कपाटवाले मकानमें तो साधु उतरते है परन्तु अश्लील चित्र वाले माल्य और धूप से सुवासित मकानमें नहीं उतरते अत: कपाट खोलने और बन्द करनेके भयसे कपाट वाले मकानमें उतरनेका निषेध करना मिथ्या समझना चाहिये। ( बोल २) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034599
Book TitleSaddharm Mandanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Maharaj
PublisherTansukhdas Fusraj Duggad
Publication Year1932
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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