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मण्डनम् ।
अर्थात् गति नाम कर्मके उदयसे उत्पन्न होने वाली नरक आदि व्यवहारका कारण यहां गति समझनी चाहिये” नरक आदि चार गतियां रूपी और अजीव हैं तो भी यहां वे जीवका परिणाम कही गई हैं इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि रुपी और अजीव भी जीवका परिणाम होता है ।
( बोल १२ वां समाप्त )
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(प्रेरक)
भ्रमविध्वंसकार भ्रमविध्वंसन पृष्ठ ३१४ पर ठाणांग ठाणा दशका मूलपाठ लिख कर उसकी समालोचना करते हुए लिखते हैं:
"इहां तो गति परिणामने भावे गतिने जीव कही, भाव इन्द्रिय, भाव कषाय, भाव योग, भाव वेद, ये सर्व जीवना परिणाम है" ( ० पृ० ३१४ )
इनके कहनेका आशय यह है कि गति नाम कर्मके उदयसे उत्पन्न होने वालीं नरक आदि चार गतियां अजीव हैं वे जीवका परिणाम नहीं हो सकती इसलिये ठाणांग ठाणा दशके मूलपाठ जो जीवका गत्यादि परिणाम कहा है वह भावरूप गत्यादि समसमझना चाहिये द्रव्य रूप नहीं । इसी तरह द्रव्य इन्द्रिय, द्रव्य कषाय, द्रव्य योग और द्रव्य वेद भी अजीव हैं वे कदापि जीवके परिणाम नहीं हो सकते इसलिये ये भी भाव रूप ही जीवके परिणाम समझने चाहिये द्रव्य रूप नहीं ।
इसका क्या समाधान ?
( प्ररूपक )
ठग ठाणा दशके मूलपाठ में जो गति, कषाय, और इन्द्रिय आदिको जीवका परिणाम बतलाया है उसका अभिप्राय भाव गति, भाव, कषाय, और भाव इन्द्रिय बतला कर द्रव्य गति, द्रव्य कषाय और द्रव्य इन्द्रियको जीवका परिणाम नहीं मानना मूलपाठ और टीकासे विरुद्ध होनेसे अप्रामाणिक है। टीकाकारने गतिके विषयमें स्पष्ट लिखा है कि
“गतिश्चह गतिनाम कर्मोदयान्नार का दिव्यपदेशहेतुः”
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अर्थात "यहां गति शब्दसे, गति नाम कर्म के उदयसे उत्पन्न होने वाली नरकादि व्यवहारका कारण जो गति है वह समझनी चाहिये"
यहां टीकाकारने नाम कर्मके उदयसे उत्पन्न होने वाली नरकादि गतिको जीवका परिणाम बतलाया है इसलिये भाव गत्यादिको ही जीवका परिणाम मान कर द्रव्यगत्यादिको जीवका परिणाम न मानना मूलपाठ और टीकासे विरुद्ध समझना चाहिये ।
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