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आश्रवाधिकारः।
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"का है । इन्द्रिय परिणाम होनेके बाद इष्ट और अनिष्ट वस्तुके सम्बन्धसे राग और द्वेष रूप परिणाम होता है अत: इन्द्रिय परिणामको कहकर कषाय परिणाम कहा गया है। वह श्रोत्र आदिके भेदसे चार प्रकारका है । कषाय परिणाम होने पर लेश्या परिणाम होता है अतः कषाय परिणामके बाद लेश्या परिणाम कहा गया है। वह लेश्या परिणाम कृष्ण आदिके भेदसे छः प्रकारका होता है। योग परिणाम होनेके बाद लेश्या परिणाम होता है क्योंकि जिसके योग रुक जाते हैं उसको लेश्या परिणाम नहीं होता इस लिये लेश्या परिणामके बाद ही योग परिणाम कहा गया है। योग परिणाम मन, वचन और कायके मेदसे तीन प्रकारका है। संसारी जीवोंका योग परिणाम होनेपर उपयोग परिणाम होता है इस लिये योग परिणामके बाद उपयोग परिणाम कहा है। उपयोग परिणाम साकार और अनाकारके भेदसे दो तरहका होता है। उपयोग परिणाम होनेके वाद ज्ञान परिणाम होता है इस लिये उपयोग परिणामको कहकर ज्ञान परिणाम कहा गया है । ज्ञान परिणाम, भाभिनिवोधिक आदिके भेदसे पांच प्रकारका है। मिथ्या दृष्टियोंके मत्यज्ञान श्रुनाज्ञान और विभंगाज्ञान भी ज्ञान परिणामसे ही ग्रहण किये जाते हैं। ज्ञान और अज्ञान रूप परिणाम होने पर सम्यक्त्व और मिथ्यात्व आदि परिणाम होता है इस लिये ज्ञान परिणामको कहकर दर्शन परिणाम कहा है, यह सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और मिश्र भेदसे तीन प्रकारका है। सम्यक्त्व परिणाम होनेके बाद चारित्र परिणाम होता है अतः सम्यक्त्व परिणामको कहकर पश्चात् चारित्र परिणामको कहा है। चारित्र परिणाम सामयक आदि भेदसे पांच प्रकारका होता है। चारित्र परिणाम, वेद परिणामके होनेपर होता है परन्तु चारित्र परिणाम होनेपर वेद परिणाम होनेका कोई नियम नहीं है क्योंकि वेद परिणाम रहित जीव में भी यथाख्यात चारित्र देखा जाता है अतः "चारित्र परिणामके अनन्तर वेद परिणाम कहा गया है। वेद परिणाम स्त्री आदिके भेदसे तीन प्रकारका है।
यहां मूल पाठ और टीकामें जीवके दश विध परिणाम कहे हैं उनमें ज्ञान, दर्शन, और चारित्र परिणाम तो अरूपी और एकान्त जीव हैं और गति, कषाय, योग और वेद परिणाम रूपी और अजीव हैं। गति, कषाय, योग और वेद आत्माके साथ क्षीर नीर न्यायसे मिलकर एकाकार होकर रहते हैं इस लिये इन्हें जीवका परिणाम कहा है यहां जो गति परिणाम कहा है वह गति नाम कर्मके उदयसे प्राप्त होने वाली नरक आदि ''चार गतियां समझनी चाहिये । टीकाकारने लिखा है
"गतिश्चेह गतिनामकर्मोदयान्नारकादि ब्यपदेशहेतुः ।"
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